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दक्षिण भारत की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : १६७
गंगवंश गंगमहादेवी :
गंगवंश राज्य की नींव डालने में जैनाचार्य सिंहनन्दि ने बड़ी सहायता की थी। ई० सन् ४३० में गंगराजा अविनीत ने गरु विजयकीति की प्रेरणा से मन्दिर तथा विहार के लिये प्रचुर दान दिया। ___ इस वंश को गंगमहादेवी जैन धर्म की अनन्य भक्त थीं । एक प्रशस्ति में गंगमहादेवी को जिनेन्द्र के चरण कमलों में 'लुब्ध भ्रमरी' के नाम से सम्बोधित किया गया है। जैन धर्म के प्रचार के लिये इन्होंने कई निर्माणकार्य करवाये । महादेवी गंग हेम्मादि मान्धाताभूप की पत्नी थीं। काललदेवी: ___ गंगनरेश राचमल्ल सत्यवाक्य चतुर्थ के मन्त्री चामुण्डराय की माता का नाम काललदेवी था। धर्मपरायण तथा मातृभक्त पुत्र चामुण्डराय ने अपनी स्नेहमयी जननी की भावना को मान देते हुए ई० स० ९७८ में गोमटेश्वर (बाहुबलि) की विश्व-विश्रुत विशाल (५७ फीट उतुंग खड़गासन) प्रतिमा का निर्माण कराकर प्रतिष्ठा करायी थी जो शिल्पकला तथा मूर्तिविज्ञान की अद्वितीय कलाकृति है । अजितादेवी :
आप परमवैज्ञानिक तथा जिनेन्द्र भक्त चामुण्डराय की पत्नी थीं। पतिपरायण तथा धर्मपरायण यह महिला अपने पति के धर्म कार्यों में सोत्साह सहयोग देती थी। अर्धांगिनी का सक्रिय सहयोग चामुण्डराय के धार्मिक कार्यों में उत्साह बढ़ाता था। माता-पिता के समान पुत्र जिनदेव ने भी अजितसेन भट्टारक की प्रेरणा से श्रवणबेलगोल में एक भव्य पार्श्वजिनालय बनवाया था।
१. डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ पृ० ७४ २. (क) डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान
पृ० ३८ (ख) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन-प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएँ
पृ० ७८ ३. वही, पृ० ८४
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