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दक्षिण भारत की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएं : १६५ किया, उस समय विहार में साध्वियों की क्या स्थिति थी, इसका उल्लेख प्राप्त नहीं होता है। यह तो निश्चित है कि उस कठिन परिस्थिति में साधु वर्ग के साथ अधिक संख्या में साध्वियाँ दक्षिण की ओर नहीं गई होगी। किसी पट्टावली में भी ऐसा उल्लेख नहीं मिलता जिससे साध्वियों के दक्षिण भारत में जाने की पुष्टि होती हो। श्रुतकेवली भद्रबाहु एवं विशाखाचार्य आदि शिष्यों ने कर्नाटक एवं तमिल प्रदेशों में जैन धर्म में नवीन प्राण-संचार किया। ई० सन् के प्रारम्भ में कुन्दकुन्दाचार्य की, जो उसी प्रदेश के निवासी थे, प्रेरणा से तमिल भाषा के विश्वविख्यात नीति-ग्रन्थ 'कुरूल काव्य' की रचना उनके गहस्थ शिष्य तिरूवल्लुवर ने की। इस लेखक की शान्त स्वभाव वाली पत्नी के गृहस्थ जीवन की एक घटना यहाँ उद्धृत है। लेखक की पत्नो वासुकी की पति-भक्ति का विवरण निम्न प्रकार है :वासुकी : ___ वासुकी तमिल भाषा के विश्वविख्यात ग्रन्थकार तिरूवल्लुवर की पत्नी थी। उसका वैवाहिक जीवन अत्यन्त सुखमय था। पति का प्रत्येक शब्द उसके लिये ईश्वर की आज्ञा के समान था। एक बार एक मुनि (साधु) ने इनके दाम्पत्य जीवन की सफलता का रहस्य पूछा तो उन्होंने कुछ दिन साधु को अपने यहां रहने के लिये कहा। उनकी राय मान कर साधु वहीं रहने लगे।
एक दिन तिरूवल्लुवर ने अपनी पत्नी को मुट्ठीभर नाखून तथा लोहे के टुकड़ों का भात पकाने को कहा। वासुकी ने लेशमात्र भी सन्देह न करते हुए वैसा ही किया। उसी प्रकार एक बार ठण्डे भात को 'बहुत गर्म है, मेरा तो छूते ही हाथ जल गया', पति के ऐसा कहने पर वह शीघ्र आई और पंखा झलने लगी। एक बार गर्मी से तपती हुई दोपहर को घना अन्धकार बताकर पति ने दीपक जलवाया। वासुकी ने बिना हिचकिचाहट के शीघ्र दीपक जला दिया । १. (क) डॉ० ज्योतिप्रसाद जैन, प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
पृ० ६९ (ख) डॉ० हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान
पृ० ३६ २. आचार्य विजयवल्लभसूरि स्मारक ग्रन्थ, पं० महेन्द्रकुमार जैन न्यायशास्त्री,
कुरुल-पृ० ८३
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