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________________ पंचम अध्याय दक्षिण भारत की जैन साध्वियाँ __ एवं विदुषी महिलाएँ दक्षिण भारत को जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएं महावीर-निर्वाण के पश्चात् ( ई० स० पूर्व ४६७) की आचार्यपरम्परा में संभूतिविजय सातवें आचार्य हुए। इनकी मृत्यु के पश्चात् इनके गुरु-भाई भद्रबाहु एक महान् धर्म प्रवर्तक आचार्य हुए। उस समय सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य मगध राज्य पर शासन कर रहे थे। उनके शासनकाल में मगध में बारह वर्ष का भयानक अकाल पड़ा। ऐसे कठिन समय में मगध के आसपास विशाल साधु संघ का भरण-पोषण होना कठिन समझकर आचार्य भद्रबाहु अपने अनुयायी साधुओं को साथ लेकर दक्षिण के कर्नाटक राज्य में चले गये। इस प्रकार मौर्य-काल में जैन धर्म का दक्षिण भारत में प्रवेश माना जाता है। बौद्धों के पालि साहित्यान्तर्गत महावंश के लंका-विवरण में ऐसा उल्लेख मिलता है कि बुद्ध-निर्वाण के १०६ वर्ष पश्चात् पाण्डुकाभय राजा का अभिषेक हुआ, उस समय उन्होंने निर्ग्रन्थ श्रमणों के लिए अनेक निवास स्थान बनवाए । संभवतः सिंहल द्वीप में जैन धर्म दक्षिण भारत से ही होता हुआ पहुँचा होगा' । अतः ऐसी मान्यता है कि जब आचार्य भद्रबाहु ने विशाल मुनि संघ लेकर दक्षिण की ओर विहार किया, उसके पहले वहाँ की जनता में जैन धर्म का प्रचार रहा होगा। रामानन्द और टिन्नावली को गुफाओं में ब्राह्मी लिपि के शिलालेखों तथा प्राचीनतम तमिल ग्रन्थों के आधार परस उप्रदेश में अति प्राचीन काल से जैन धर्म का प्रचार सिद्ध होता है। उत्तर भारत से आचार्य भद्रबाहु ने जब दक्षिण की ओर प्रस्थान १. (क) डॉ० हीरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान पृ० ३६ (ख) बी० एन० लूनिया-प्राचीन भारतीय संस्कृति-पृ० ३६७ (ग) मुनि सुशीलकुमार-जैन धर्म का इतिहास-पृ० ११२ । २. डॉ. होरालाल जैन-भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान-पृ० ३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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