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________________ १५४ : जैनधर्म की प्रमुख माध्वियाँ एवं महिलाएं कहा कि यदि यह विवाह सम्पन्न नहीं हो सका तो मैं अग्नि में प्रवेश कर आत्मदाह कर लूगी। पुत्री की इस प्रतिज्ञा से चिन्तित होकर उसके पिता ने आर्य वज्र को सम्पत्ति आदि से प्रभावित कर सांसारिक जीवन में लौट आने का सुझाव दिया, किन्तु निवृत्ति मार्ग में दृढ़-प्रतिज्ञ आर्य वज्र पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। कुछ समय पश्चात् आर्य वज्र के उपदेश से रूक्मिणी का सांसारिक नशा शीघ्र उतर गया। मोह रूपी मादक नशे के वशीभूत होकर रूक्मिणी ने जिसे अपने पति रूप में स्वीकारा था, कुछ ही समय पश्चात् उसी के उपदेशों से प्रभावित होकर स्वयं सांसारिक भोगोपभोगों से विरक्त होकर उन्हें अपने साधना मार्ग का आराध्यदेव स्वीकार किया। बाद में उन्हीं से दीक्षा लेकर निवृत्ति मार्ग में प्रवृत्त हुई। मूल्यांकन-रूक्मिणी भौतिक सांसारिक सुखों के लिये जिसे वरण करना चाहती थी, उसी मुनि (वज्र स्वामी) ने अमरत्व की राह बताई। रूक्मिणी सौन्दर्य तथा समृद्धि को तणवत् त्याग कर अपने प्रियतम के पीछे आत्म तत्त्व की खोज में निकल पड़ी। नारी के इस अपूर्व त्याग की महिमा व गहराई को शब्दों तथा भावों में कौन बाँध सका है ? रूक्मिणी अपने कर्मबन्धों का क्षय करने के लिये दर्शन, ज्ञान, चारित्र की आराधना करती हुई मोक्ष मार्ग पर अग्रसर हुई । उपर्युक्त चर्चा में साध्वियों के उपाश्रय का उल्लेख हुआ है-जहाँ श्राविकाएँ बालक वज्र को लेकर आती थीं। साध्वी तथा श्राविका संघ अपने-अपने कर्तव्यों का यथावत् पालन कर रहा था। यह भी सत्य प्रकट होता है कि आज से दो हजार तीन सौ वर्ष पूर्व भी गृहस्थ महिलाएँ उपाश्रय में जाकर साध एवं साध्वियों से धर्म-चर्चा सुनती थीं तथा व्रत, तप इत्यादि में तत्पर रहती थीं। अतः इस दृष्टान्त से यह स्पष्ट होता है कि साध्वी तथा श्राविका संघ एक दूसरे पर निर्भर होते थे, साथ ही जीवन में विभिन्नता (त्यागी, १. बभाषे जनकं स्वयं, सत्यं मद्भाषितं शृणु । श्रीमद्वज्राय मां यच्छ, शरणं मेऽन्यथानलः ।।१३८॥ -प्रभावक चरित्र, पृ०६ २. उपाध्याय विनयविजयजी-कल्पसूत्र-१३७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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