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________________ महावीरोत्तर जैन साध्वियां एवं महिलाएँ : १५३ 'गिरि (वज्र के पिता) भिक्षार्थ सुनन्दा के यहाँ पहुँचे, ज्योंही उन्होंने भिक्षा -पात्र आगे किया त्योंही सुनन्दा ने आवेश में आकर बालक को ही पात्र में डाल दिया और कहा, 'आप तो चले गये फिर इसे यहाँ क्यों छोड़ दिये। इसको भी साथ ले जाइए ।' उपाश्रय में गुरू की आज्ञा से शय्यातरी श्राविकाओं ने बालक (वज्र) का पालन-पोषण किया। कुछ वयस्क होने पर वज्र भी श्राविकाओं के साथ साधु-साध्वियों के पास जाते रहते थे । श्रमणों के त्यागमय उपदेशों को सुनकर उनमें वैराग्य की भावना जागत हई और जाति-स्मरण ज्ञान भी उत्पन्न हुआ। बाद में आचार्य सिंहगिरि ने उन्हें मुनि दीक्षा प्रदान की।' कथानुसार जब बालक वन तीन साल का हुआ तब सुनन्दा श्राविका ने राजसभा के समक्ष पुत्र को अपने पास रखने की कोशिश की । इस हेतू पुत्र को कई प्रकार के भौतिक प्रलोभन भी दिए, किन्तु वज्र ने साधु धनगिरि का दिया हुआ रजोहरण ही लिया ।। इस घटना से सुनन्दा को जीवन को यथार्थता का बोध हुआ तथा वह भी सांसारिक मोह-जाल को तोड़कर साध्वी संघ में दीक्षित हो गई। कालांतर में पति व पुत्र का अनुसरण करते हुए निवृत्ति मार्ग में प्रवृत्त हुई। रूक्मिणी : ___ साध्वी परम्परा की श्रृंखला में इस महिमामयी महिला रूक्मिणी का त्याग अपने आप में सबसे निराला तथा अनूठा रहा है । पाटलिपुत्र के धनकुबेर धनदेव की पुत्री अपने अद्भुत रूप, सौन्दर्य के लिये श्रेष्ठि वर्ग में चर्चा का विषय बनी हुई थी। किसी समय आर्य वज्र विहार करते हुए पाटलिपुत्र पधारे । दर्शनों के लिये जन समूह उमड़ पड़ा। धनदेव की इकलौती पुत्री रूक्मिणी भी अपनी सहेलियों के साथ उपवन में पहुँची । प्रवचन सुनते हुए आर्य वज्र के रूपादि गुणों पर मोहित होकर रूक्मिणी ने मन ही मन उन्हें अपने पति के रूप में वरण कर लिया। इस संकल्प को अपने माता-पिता को बताया । और यह भी १. उपा० विनयविजयजी-कल्पसूत्र-हिन्दी अनुवाद, पृ० १३७ २. वज्रसेन (वज्र) का वर्णन प्रा० प्रा० नेम्स, पृ० ६६२, यहाँ रुक्मिणी का वर्णन प्राप्त नहीं होता। ३. उपा० अमरमुनि-इतिवृत्त-रत्नमुनि स्मृति ग्रन्थ-पृ० २२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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