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१५२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएँ
के समक्ष डालकर अपने प्राणों की रक्षा की। साध्वी की इस निडरता से आस-पास के नागरिक बड़े प्रभावित हुए और जय-जयकार करते हुए जैन धर्म एवं सिद्धान्तों की प्रशंसा करने लगे। यह देखकर राजा अति प्रभावित हुआ और उसने अपनी बहन से कहा, 'सहोदरे, इस अगाध धैर्यशालिनी साध्वी के पास तुम प्रव्रजित हो सकती हो। क्योंकि इस साध्वी का धर्म श्रेष्ठ और सर्वज्ञ प्ररूपित है।"
सुनन्दा :
उज्जयिनी नगरी के निकटस्थ तुम्बवन ग्राम के धनपाल श्रेष्ठि की पुत्री का नाम सुनन्दा था। उसके भाई का नाम सुमति तथा पति का नाम धेनगिरि था । उस समय के प्रभावशाली आचार्य सिंहगिरि के प्रभाव से भाई सुमति ने उनसे दोक्षा ग्रहण की तथा उन्हीं की आज्ञानुवर्तनी स्थविरा साध्वी के पास सुनन्दा ने श्रमण धर्म के बारह व्रतों को ग्रहण किया था । स्वयं गर्भवती होते हुए भी पति को संसार - विरक्ति को देखकर सुनन्दा ने उन्हें दीक्षित होने की सलाह दी गर्भावधि पूर्ण होने पर सुनन्दा ने एक भाग्यशाली एवं तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया । कालांतर में वह सुनन्दा-पुत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ । शैशवावस्था में ही वज्र ने अपने कानों से पिता के दीक्षित होने की बात बार-बार सुनी थी ।
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विलक्षण बुद्धि तथा पूर्वभव के निवृत्तिमार्गी संस्कारों के कारण शिशु वज्र ने अत्यधिक रुदन करना शुरू कर दिया। माता सुनन्दा ने अनेक उपाय किये पर उसका रुदन कम नहीं हो सका ।" एक बार मुनि धन
१. आ० हस्तीमलजी - जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग २, पृ० ४५०-४५१ २. आवश्यकचूर्णि प्र० पृ० ३९०, आवश्यकवृत्ति ( हारिभद्रीय), पृ० २८९-९०, कल्पसूत्रवृत्ति (विनयविजय), पृ० २६२ उत्तराध्ययनवृत्ति (शान्तिसूरि ) पृ० ३३३ ।
३. उपा० विनयविजयजी - कल्पसूत्र - पृ० १३७
४. (क) आ० हस्तीमलजी - जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग २, पृ० ५६६, ५७२
(ख) आवश्यक मलयवृत्ति उपोद्घात - पृ० ३८७
(ग) उपा० अमरमुनि - पूर्व इतिवृत्त रत्नमुनि स्मृति ग्रन्थ - पृ० २१
५. ( क ) आ० हस्तीमलजी - जैन धर्म का मौलिक इतिहास - भाग २, पृ०
५६६-५७२
(ख) उपा० अमरमुनिजी - रत्नमुनि स्मृति ग्रन्थ - पृ० २१
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