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महावीरोत्तर जैन साध्वियाँ एवं महिलाएँ : १३९
यक्षा':
जैन परम्परा में महासती चन्दनबाला के पश्चात् यक्षा, यक्षदत्ता आदि सात परम प्रभावक साध्वियों का वर्णन उपलब्ध होता है। भारतीय ऐतिहासिक सर्वेक्षण से इतना स्पष्ट है कि नंद वंश के राजाओं ने जैन धर्म के प्रचार-प्रसार में अपना महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। पाटलिपुत्र के नन्दराजा महापद्म के महामंत्री शकडाल श्रमणोपासक थे। उनके दो पुत्र-स्थूलभद्र व श्रेयांक तथा अद्भुत स्मरणशक्ति वाली यक्षा, यक्षदत्ता, भूता, भूतदत्ता, सेना, वेना और रेणा नाम की सात पुत्रियां थीं । मंत्री शकडाल तथा उनकी पत्नी लांछन देवी जैन धर्मानुयायो थे, अतः बाल्यकाल से ही अपने पुत्र-पुत्रियों को धार्मिक संस्कारों की उचित शिक्षा प्रदान किए । प्रथम पुत्री यक्षा कठिन से कठिन गद्य अथवा पद्य को केवल एक बार सुन कर उसे अपने स्मृतिपटल पर अंकित कर तत्क्षण यथावत् सूना देती थी। इसी प्रकार क्रमानुसार अन्य बहनें भी दो, तीन, चार, पाँच, छः और सात बार किसी भी गद्य अथवा पद्य को सुनकर यथावत् सुना देती थीं।
राजा नन्द के दरबार में वररुचि नामक कवि को प्रतिदिन एक श्लोक सुनाने के बदले में एक सौ स्वर्ण महरें प्राप्त होती थीं। स्वामिभक्त मंत्री शकडाल को राज्य के धन का इस प्रकार अपव्यय उचित नहीं लगा। एक समय राजदरबार में मंत्रिपुत्रियों ने वररुचि के बनाये हुए श्लोकों को सुना और तत्क्षण दोहरा दिया । सातों विदुषी कन्याओं द्वारा श्लोकों की पुनरावृत्ति सुनकर राजा नन्द उनकी स्मरण शक्ति तथा विद्वत्ता से प्रभावित हुआ। इस घटना से वररुचि अपमानित होकर मंत्री शकडाल
१. आवश्यकचूणि द्वि० पृ० १८३, आवश्यकनियुक्ति १२७९, आवश्यकवृत्ति
(हरिभद्रीय) पृ० ६९३-९४, उत्तराध्ययननियुक्ति और उत्त० सूत्र पृ०.
१०५, कल्पसूत्रवृत्ति पृ० २५२ आदि । २. (क) आवश्यक चूणि-भाग २, पृ० १८३
(ख) प्राकृत प्रापर नेम्स, पृ० ७४७ । (ग) एणक आफ इम्पीरियल यूनिटी, पृ० ३४-३५
(घ) आ० विनयविजयसूरि-कल्पसूत्र, पृ० १३२ ३. आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास, पृ० ७७८
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