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________________ १३८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ कठिन समय में पूर्ण सहयोग दिया तथा साध्वी संघ ने धारिणी को पुनः संघ में सम्मिलित कर लिया । यह उदाहरण साध्वी समुदाय के उदार मनोभावों का प्रकटन है । साध्वी धारिणी ने युद्ध की भयावह हिंसा को रोककर अहिंसा के महत्त्व को स्थापित किया । श्रावक मनक की माता ( श्राविका ) ' तीर्थंकर महावीर के निर्वाण के पश्चात् भी आर्या चन्दनबाला साध्वी परम्परा में वृद्धि होती रही । गुरु प्रभव स्वामी के द्रव्य यज्ञ और भाव यज्ञ की तात्त्विक विवेचना सुनकर शय्यंभव बहुत प्रभावित हुए तथा उनमें वैराग्य भाव जागृत हुआ । शुभ कार्य में शिथिलता उचित नहीं, ऐसा सोचकर उन्होंने अपनी गर्भवती पत्नी को त्याग कर दीक्षा ग्रहण की। कालांतर में इन्होंने आचार्य पद ग्रहण किया । कुछ समय पश्चात् उनकी पत्नी ( श्राविका ) ने पुत्र को जन्म दिया । पुत्र मनक को भी कम उम्र में दीक्षित होने की भावना जागृत हुई । पुत्र के मनोभावों को ध्यान में रखते हुए माता ने अपनी भावनाओं को रोककर उसे दीक्षा की स्वीकृति दे दी । ज्योतिषशास्त्र के माध्यम से पुत्र मनक की अल्प आयु को जानकर शय्यंभव ने उसके आत्मोत्थान के लिये 'दशवेकालिक सूत्र' की रचना की । आचार्य ने पुत्र की आत्मोन्नति हेतु धर्म सिद्धान्तों का संक्षिप्तीकरण कर उसके वास्तविक मर्म से अवगत कराया । अल्प आयु में ही पुत्र-वियोग के आघात को धैर्यपूर्वक सहन करते हुए मनक की माता ने भी अपने जीवन को धर्म ध्यान की ओर मोड़ दिया ! मनक की माता का मूल्यांकन - सगर्भा होते हुए भी पति को संसारत्याग की आज्ञा प्रदान कर स्वयं जीवन की कठिनाइयों का सामना किया तथा हृदय की पीड़ा को दबाकर अपने पुत्र के दीक्षा समारोह पर प्रसन्नता भी व्यक्त की । इस प्रकार अपने कृत्य से धार्मिक जीवन को प्रशस्त करने वाली इस महिला ने एक आदर्श उपस्थित किया । १. दशवैकालिकचूणि, पृ० ६-७ दशकालिक नियुक्ति पृ० १०, महानिशीथ पृ० ११६, दशवेकालिकवृत्ति (हरिभद्र) पृ० २४८, आवश्यक पू० २७ २. प्रभव स्वामी ने द्रव्य यज्ञ (वस्तुओं को अग्नि में समर्पण करना) तथा भाव यज्ञ का बहुत मार्मिक विवेचन किया, जिसकी सच्चाई से प्रभावित होकर वैदिक धर्म त्याग कर जैन धर्म अपनाया । ३. (क) सुशीलमुनि - जैनधर्म का इतिहास - पृ० १२९ (ख) आ० हस्तीमलजी - जैन धर्म का मौलिक इतिहास - पृ० ८१, ३१६: Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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