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________________ महावीरोत्तर जैन साध्वियों एवं महिलाएँ : १३७ चुपके से राज्य त्याग कर कौशाम्बी राज्य में चली गई और वहां साध्वी समुदाय में दीक्षित होकर उनके साथ रहने लगी। धारिणी अपने एक पुत्र को उज्जयिनी छोड़ आई थी तथा वह दीक्षित हुई तब गर्भवती थी। यद्यपि गर्भावस्था में दीक्षित होना दोषपूर्ण था किन्तु उसने शील रक्षा को सर्वोपरि मानते हुए इसे रहस्य ही रहने दिया। गर्भावधि पूर्ण होने पर धारिणी ने एक पुत्र को जन्म दिया, इस अवसर पर नगर के श्राविका संघ ने पर्याप्त सहयोग किया । साध्वी संघ के नियमों के अनुसार शिशु को अपने पास में रखना सम्भव नहीं था । अतः उसने कठोर हृदय करके पुत्र को जंगल में छोड़ दिया। कुछ समय पश्चात् उसी रास्ते से कौशाम्बो के राजा अजयसेन लौट रहे थे, उन्होंने इस नवजात शिशु को देखकर उठा लिया और ले जाकर रानी को दिया। निःसंतान रानी शिशु को पाकर अत्यन्त हर्षित हुईं और शिशु का पुत्रवत् पालन करने लगीं। कालांतर में उसका नाम मणिप्रभ रखा गया। समयावधि के साथ दोनों पुत्र वयस्क हुए और अलग-अलग राज्य के अधिकारी बन गये । एक समय साध्वी धारिणो ने सुना कि कौशाम्बी के राजा मणिप्रभ तथा अवन्ति के राजा अवन्तिसेन की सेनाएँ युद्ध स्थल पर तैयार खड़ी हैं । युद्ध में रक्तपात रोकने के लिए साध्वी धारिणी युद्धस्थल पर गई । वहाँ दोनों राजाओं को समझाते हुए कहा-"तुम दोनों मेरे 'पुत्र तथा सहोदर हो, यह हिंसात्मक युद्ध तुम्हारे मध्य उचित नहीं है। साध्वीजी ने अपने भूतकाल की घटना दोनों पुत्रों को सुनायी। दोनों राजकुमार अपनी माता के जीवन की हृदयविदारक घटना सुनकर, उनके त्यागमय जीवन से प्रभावित हुए। उन्होंने माता को प्रणाम किया और भ्रातृभाव से रहने लगे । धारिणी-मूल्यांकन : धारिणी अपने सतीत्व की रक्षा हेतु जैन साध्वी संघ में सम्मिलित हुई । प्रमुख साध्वी ने भी एक विवश नारी को आश्रय देकर दया-करुणा का प्रत्यक्ष उदाहरण प्रस्तुत किया। श्राविका संघ ने भी १. (क) आवश्यकचूर्णि-भाग २, पृ० १८९-१९० (ख) आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग २, पृ० ७८७ २. उपा० विनयविजयजी-कल्पसूत्र सुबोधिनी ३. (क) प्राकृत प्रापर नेम्स-१० २७ (ख) आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग २, पृ०७९० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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