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________________ १३६ । जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं जिक तथा व्यावहारिक दृष्टि से पति की अनुगामिनी बनकर उसी मार्ग का अनुसरण किया तथा देह-सुख के स्थान पर आत्म-सुख को महत्त्व दिया । अतः पूर्ण यौवन में इन्द्रियसुखों को त्यागकर उन नारियों ने एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। साध्वी विगतभया: राजा अवन्तिसेन के राज्य में उज्जयिनी जैन धर्म की प्रमुख नगरी थी । यहाँ साधु-साध्वियों के ठहरने के लिए उपाश्रय तथा अन्य सुविधाएँ उपलब्ध थीं। यहीं पर महत्तरा विजयवती के संरक्षण में कई साध्वियाँ तप, जप आदि साधनों से आत्मोन्नति में लीन थीं। इस साध्वी संघ में विगतभया नाम की साध्वी तप, ध्यान आदि में अग्रणी थी। उसने धार्मिक विधि से अनशन कर सल्लेखनापूर्वक मृत्यु को वरण किया। इस साध्वी के अपूर्व देहत्याग के समय कौशाम्बी के चतुविध संघ ने महोत्सव का आयोजन किया था । इस घटना से विश्वसनीय तौर पर हम कह सकते हैं कि साध्वी संघ आस-पास के नगरों व ग्रामों में पैदल विहार करके जैन धर्म के सिद्धान्तों का प्रचार करता था + साध्वी धारिणी के वर्णन से भी यह पुष्टि होती है कि उन्होंने कौशाम्बी जाकर इसी साध्वी संघ में दीक्षा ग्रहण की थी। धारिणी : तीर्थंकर महावीर के अनन्य उपासक उज्जयिनी के राजा चण्डप्रद्योत को मृत्यु के पश्चात् राजा पालक शासक बना। श्रमणोपासक राजा पालक के दो पुत्र थे-अवन्तिवर्धन तथा राज्यवर्धन (राष्ट्रवर्धन) । एक समय लघुभ्राता राज्यवर्धन की पत्नी पर मोहित होकर, अवन्तिवर्धन ने अपने छोटे भाई की हत्या कर दी । बाद में उसने रानी धारिणी को अपनी रानी बनाने का सन्देश प्रेषित किया । अपने सतीत्व की रक्षा हेतु धारिणी १. आवश्यकनियुक्ति १२८१, आवश्यकवृत्ति ( हरिभद्र ) पृ० ६९९ २. (क) आवश्यक चूर्णि-भाग, २, पृ० १९१ (ख) आ० हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास-भाग २, पृ० ७६० ३. आवश्यकनियुक्ति १२८२, आवश्यकचूणि, द्वि० पृ० १८९, उत्तराध्ययनवृत्ति (कमलसंयम) पृ० ७३ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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