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________________ तृतीय अध्याय महावीरोत्तर जैन साध्वियाँ एवं महिलाएँ तीर्थंकर महावीर के निर्वाण ( ई० पूर्व ५२७ ) के पश्चात् पाँचवें गणधर श्री सुधर्मा स्वामी संघ के प्रथम आचार्य बने ।' इनके नेतृत्व में तीर्थंकर महावीर द्वारा स्थापित संघ के चारों वर्गों ने ( साधु, साध्वी, श्रावक, श्राविकाएँ) जैनधर्म का प्रचार एवं प्रसार बड़ी निष्ठा तथा उत्साह के साथ किया। तीर्थंकर महावीर के समय साध्वी चन्दनबाला के नेतृत्व में ३६ हजार साध्वियों के दीक्षित होने का उल्लेख प्राप्त होता है। इतनी बड़ी संख्या में महिलाओं ने संसार त्याग कर दीक्षा अंगीकार की, यह जैनधर्म के विशिष्ट गुणों का प्रभाव ही था। महावीर द्वारा दीक्षित इन साध्वियों की शृखला उनके निर्वाण के पश्चात् भी चलती रही और कई राज महिषियों, राज पुत्रियों तथा श्रेष्ठि महिलाओं ने संसार त्याग कर प्रव्रज्या ली। इस प्रकार साध्वी परम्परा की नीव जो पूर्ववर्ती तीर्थंकरों के समय से चली आ रही थी, उसे महावीर ने इतना सुदृढ़ एवं व्यावहारिक रूप प्रदान किया कि वह काल चक्र के थपेड़े खाकर भी अक्षुण्ण बनी रही। इस निवृत्तिमार्गी पुरातन परम्परा ने वर्तमान में भी महिला जगत् में अपना वर्चस्व बनाये रखा। प्रमाण रूप में आज भी हम देखते हैं कि जैन धार्मिक परम्परा में साधुओं की ( मुनियों को ) अपेक्षा साध्वियों की संख्या अधिक है। आज भी विविध जैन संघों में साध्वियों की संख्या साधुओं की संख्या के अनुपात में तिगुनी है । १. उपा० विनयविजयजी-कल्पसूत्र-सुबोधिका टीका-पृ० ९७ २. वही-पृ० ९८ ३. (क) कवि पुष्पदन्त–वीर जिणिद चरिउ-पृ० ३५ (ख) नन्दी सूत्र-पृ० ७९ . ४. जैनधर्म का मौलिक इतिहास-१० २०२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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