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________________ तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियों एवं महिलाएँ : १३१ कठिन परिस्थिति में वे संयम और विवेक से अपने कर्तव्यों का पालन करती थीं । सेवा और विनयशील ता उनके स्वाभाविक गुण थे । तत्कालीन समाज में नारी को अत्यन्त हेय दृष्टि से देखा जाता था और इसी हेय दृष्टि की शिकार चन्दनबाला आदि नारियाँ हुई थीं, फिर भी उनके मन में समाज के प्रति किसी प्रकार की कड़वाहट पैदा नहीं हई। वे अपने समक्ष उपस्थित कठिन परिस्थितियों को अपने कर्मों का प्रतिफल मानते हुए उनका साहस के साथ सामना करती थीं। उदाहरणार्थ चन्दनबाला ने अपने राजकुमारी होने का आभास नहीं होने दिया, यह उसकी महानता का परिचायक है। तीन दिन तक भखी-प्यासी रहने पर भी अतिथि को पहले भोजन देने की भावना उस युग की नारियों की दान को उच्च तम भावना की प्रतीक है। तीर्थंकर महावीर के साथ चन्दनबाला का नाम उसी प्रकार जुड़ा हुआ है, जिस प्रकार भगवान् राम के साथ शबरी का। जिस प्रकार भगवान् राम ने समाज द्वारा तिरस्कृत व उपेक्षित भील स्त्री शबरी के जूठे बेर भाई लक्ष्मण के मना करने पर भी खा लिये और ऊँच-नीच के भेदभाव की खाई को मिटाया, ठीक उसी प्रकार भगवान् महावीर ने भी विविध प्रकार की घोर यातनाओं, संघर्षों और सांसारिक थपेड़ों से त्रस्त बन्दिनो चन्दनबाला का उद्धार कर तथा उसे तत्कालीन श्रमण संघ की छत्तीस हजार साध्वियों का नेतृत्व प्रदान कर महिला वर्ग को महनीयता प्रदान की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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