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________________ १३० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाएं पकड़कर कष्ट दे रहे थे। दोनों परिवाजिकाओं ने उन ग्राम-रक्षकों को महावीर का परिचय देते हुए उन्हें बताया कि 'क्षत्रियकुण्ड के तत्कालीन राजा नन्दिवर्धन के भाई उच्चकोटि के परम साधक हैं तथा साधना काल में मौनव्रत लिये हए हैं। अतः इन्हें शीघ्र बन्धन-मक्त कर दो।' इस पर रक्षकों ने शीघ्र ही महावीर को बन्धन मुक्त कर दिया और उनसे क्षमा याचना की। श्रमण धर्म के कठोर नियमों से परिचित होने के कारण साधनारतमनि के कष्ट का निवारण कर उन दोनों ने कर्तव्य पालन किया। विजया और प्रगल्भा ने विनयावनत् होकर वर्धमान महावीर का वन्दन किया और उनकी कठोर साधना तथा सहनशीलता की सराहना करती हुई अपने स्थान को वापिस गई।२।। सोमा और जयन्ती : विजया और प्रगल्भा के अनुरूप हो सोमा और जयन्ती नामक परिवाजिकाओं ने भी गाँव के आरक्षकों को महावीर से दुर्व्यवहार करने पर रोका और कष्ट के लिये उनसे क्षमा मांगी ।" ___ महावीरकालीन नारियों में चन्दनबाला का चरित्र ऐसा जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं, जो त्याग, तपस्या और सहिष्णुता के साथ अपने लक्ष्य पर दढ रहकर चलने वाले पथिकों का मार्ग सदैव प्रशस्त करता रहेगा। उस युग की नारियां न केवल विदुषी और विचारक थीं, बल्कि हर १. आवश्यकनियुक्ति ४८५, विशेषावश्यक १९३९, कल्पसूत्रवृत्ति, पृ० १६६, आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि), पृ० २८२ । २. पं० कल्याण विजयजी गणी 'श्रमण भगवान महावीर, पृ. ३२ (क) आचार्य हस्तीमलजी-जैनधर्म का मौलिक ई०, पृ३२३ ३. आवश्यकचूणि प्र० पृ० २८६, आवश्यकनियुक्ति ४७८, विशेषावश्यक १९३१, आवश्यकवृत्ति ( हरिभद्रीय ) पृ० २०४, कल्पसूत्रवृत्ति, पृ० १०६ आदि । ४. आवश्यकनियुक्ति ४७८, आवश्यकचूणि प्र० पृ० १८६, कल्पसूत्रवृत्ति, पृ० १०६, विशेषावश्यक, १९३२ ५. (क) वही पृ० २९ (ख) वही पृ० ३७९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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