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________________ तीर्थंकर महावीर के युग की जैन साध्वियों एवं महिलाएं : १२९ वत्सपालिका: साधना के ग्यारहवें वर्ष में छः मास की तपस्या पूर्ण कर महावीर वज्रगाम में गोचरी लेने गये। वत्सपालिका नाम की वृद्धा ग्वालिन ने कृशकाय तपस्वी को देखकर श्रद्धापूर्वक वन्दन किया और भक्तिभाव से अपने यहाँ पारणा करने को निमंत्रित किया । ग्वालिन ने प्रभु को परम अन्न (दूध की खोर) से पारणा करवाया। इस दान की महिमा से वहाँ पंच दिव्य प्रगट हुए। वह महावीर की संयम देव के उपसर्ग के समय की दीर्घकालिक तपस्या का पारणा था । ग्वालिन वत्सपालिका का दारिद्रय सदा के लिये मिट गया। वह महावीर को भक्त बन गई।२।। वत्सपालिका-मूल्यांकन-तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था में निम्न श्रेणी के लोगों से आहार ग्रहण कर महावीर ने जाति-पाँति के भेद को सर्वथा मिटा दिया था। विजया और प्रगल्भा : जैनधर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के धार्मिक सिद्धान्तों पर विश्वास करने वाली ये दोनों परिव्राजिकाएं भदिदया नगरी के पास कूपिय सन्निवेश (ग्राम) में रहती थीं। इन्होंने पूर्व में श्रमण धर्म में दीक्षा ग्रहण की थी, परन्तु साध्वी संघ के कठोर नियम पालन में स्वयं को असमर्थ पाकर उस संयम व्रत को त्याग दिया और परिवाजिका बनकर अपना समय धर्म-ध्यान में व्यतीत करने लगीं। एक समय वर्धमान महावीर विचरण करते हुए पाँचवें चातुर्मास में कूपिय गाँव में आये । वहाँ के आरक्षकों ने उन्हें गुप्तचर समझ कर बन्दी बना लिया । श्रमण मुनि को बन्दी बनाने की चर्चा दोनों परिव्राजिकाओं ने भी सुनी। इस समाचार को सुनकर करुणा से दोनों विगलित हो गई और शीघ्र ही उस स्थान पर पहुंची जहाँ कि नगर-रक्षक महावीर को १. आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि) पृ० २९३ २. आचार्य विनयविजयसूरि-कल्पसूत्र' सुबोधिका टोका, पृ० ८० ३. आचार्य हस्तीमल जी जैन-धर्म का मौलिक इतिहास पृ० ३९१ ४. आवश्यकचूर्णि, पृ० २९१, आवश्यकनियुक्ति ४८५, विशेषावश्यक १९३९, आवश्यकवृत्ति (मलय०) पृ० २८२, कल्पसूत्रवृत्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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