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१२४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं *पत्नी और एक शय्या का त्याग करते हुए क्रमशः वैराग्य की ओर अग्रसर हुआ।
तीर्थंकर महावीर के राजगह आगमन पर शालिभद्र तथा धन्य दोनों ने प्रव्रज्या ग्रहण की। माता भद्रा भी पुत्रवधुओं के साथ श्रावक-धर्म स्वीकार कर साधनामय जीवन व्यतीत करने लगी। ___ एक बार तीर्थंकर महावीर अपने धर्म समुदाय के साथ राजगृही पधारे । शालिभद्र मुनि ने कठोर साधना से अपनी काया को कृश कर लिया था। वे महावीर स्वामी की आज्ञा लेकर भद्रा माता के यहाँ आहार के लिये गये । पर महावीर के दर्शनार्थ जाने की आकुलता में माता भद्रा अपने पुत्र (मुनि) को नहीं पहचान सकी और शालिभद्र बिना आहार प्राप्त किये ही लौट गये। मार्ग में एक ग्वालिन् ने वात्सल्य के वशीभूत होकर उन्हें दही से पारणा करवाया। मुनि शालिभद्र महावीर की आज्ञा प्राप्त कर सल्लेखना लेकर पर्वत पर चले गये।
माता भद्रा अपने परिवार सहित समवसरण में आई भगवान् महावीर ने इस अवसर पर शालिभद्र की भिक्षाचारी से लेकर अनशन तक का सारा वृत्तान्त कह सुनाया । यह ज्ञात होने पर कि द्वार पर आये उपेक्षित मुनि कोई और नहीं बल्कि पुत्र शालिभद्र तथा जामाता धन्य ही थे, माता भद्रा को वज्राघात-सा लगा। वह शीघ्रता से पर्वत पर पुत्र को देखने गई। पुत्र की कृशकाया तथा साधनामय जीवन को देखकर माता का हृदय विकल हो उठा । वह मच्छित हो गई। इस समय वहाँ सम्राट श्रेणिक भी थे, उन्होंने माता भद्रा को आश्वस्त किया तथा धर्म में दृढ़ रहने के लिए साग्रह प्रेरित किया। __ माता भद्रा के पुत्र शालिभद्र का वैभव विलासमय सांसारिक जीवन तथा कठोर साधना युक्त साधु जीवन दोनों ही असाधारण तथा अद्वितीय था।
भद्रा-मूल्यांकन-भद्रा की कार्यकुशलता, सक्षमता, व्यवहार दक्षता व बुद्धि चातुर्य से स्पष्ट होता है कि वे एक विलक्षण प्रतिभाशाली गृहणी थीं, जिन्होंने स्वयं अपने पति के व्यवसाय वाणिज्य का चतुर्दिक विकास और विस्तार किया । उनका चरित्र इस बात का द्योतक है कि तत्कालीन समाज में श्रेष्ठी की पत्नी सर्वगुणसम्पन्न एवं निपुण होती थीं । वाणिज्यव्यवसाय के कार्य संचालन की उनमें अद्भुत क्षमता थी। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में उनकी दक्षता का प्रमाण स्वतः सिद्ध है, तत्कालीन समाज में इन्हीं गुणों के कारण उन्हें गौरव और.आदर प्राप्त था।
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