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________________ तीर्थंकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : १२५ भद्रा' : राजगृही नगर के राजा श्रेणिक के राज्य में धन्य सार्थवाह अपनी पतिव्रता सहधर्मिणी भद्रा के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करते थे । उन्हें सब तरह का सुख था पर पत्नी भद्रा के कोई संतान नहीं थी । संतान न होने से वह खिन्न व निराश रहती थी । निःसंतान भद्रा अपने इस दुःख को दूर करने के लिये श्रद्धा से नाग देवता की आराधना करने लगी और इस श्रद्धा के फलस्वरूप उसे पुत्र की प्राप्ति हुई। इसका नाम देवदत्त रखा तथा चेटक नाम के सेवक को उसकी परिचर्या हेतु नियुक्त किया । एक बार भद्रा ने अपने पुत्र देवदत्त को नहलाकर सुन्दर वस्त्राभूषणों से विभूषित कर चेटक की देखरेख में खेलने के लिये भेजा । वह चेटक बालक देवदत्त को एक जगह बैठाकर अन्य बालकों के साथ असावधान होकर खेलने लगा । इसी समय विजय चोर ने बालक देवदत्त के आभूषणों को देखकर लोभवश चुपके से उसका अपहरण कर लिया और निर्जन स्थान में ले जाकर उसकी हत्या कर शव निर्जन अंधेरे कुएँ में डाल दिया तथा भषण लेकर भाग गया । राज्य कर्मचारियों द्वारा पकड़े जाने पर विजय चोर को कड़ी सजा हुई तथा कारावास में डाल दिया गया । तत्पश्चात् किसी राजकीय अपराध में धन्य सार्थवाह को कुछ समय के लिये कारावास में जाना पड़ा। विजय चोर भी वहाँ सेठ से मिला । श्रेष्ठो का भोजन घर से आता था । विजय चोर ने श्रेष्ठी से कहा कि इसमें से कुछ भाग मुझे भी दो तब उन्होंने उत्तर में कहा कि - " मेरे पुत्र के हत्यारे, तुम्हें यह भोजन नहीं दूंगा ।” कारागार में अन्य साथी न होने से कभी-कभी न चाहते हुए भी किसी काम के लिये विजय चोर की सहायता लेनी पड़ती थी । धीरे-धीरे निकटता बढ़ी और श्रेष्ठी अपने भोजन में से कुछ हिस्सा विजय को प्रतिदिन देने लगा । नौकर द्वारा अपने पति और विजय चोर की निकटता को जानकर भद्रा को असीम वेदना हुई । जब धन्य सार्थवाह कारावास से मुक्त होकर घर आये तो कुटुम्ब के अन्य लोगों ने सम्मानपूर्वक उनका कुशल क्षेम पूछा लेकिन भद्रा ने उनसे अच्छी तरह बात भी नहीं की । श्रेष्ठी द्वारा इसका कारण पूछने पर उसने बताया कि- "आप मेरी सन्तान के हत्यारे को अपना भोजन देते. १. ज्ञाताधर्मकथासूत्र ३३ - ३७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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