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________________ १२२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं प्रण पर दृढ़ हैं तो वह उन्हें रोक न सकी । अंततोगत्वा श्रेष्ठी धन्ना ने शालिभद्र को साथ लेकर तीर्थंकर महावीर से दीक्षा ग्रहण की। ___ अपने त्याग तथा भ्रातृ प्रेम के कारण सुभद्रा का सन्नारियों में गौरवपूर्ण स्थान है । अपनी माता भद्रा तथा ३२ भाभियों के साथ उसने श्राविका के बारह व्रतों को अंगीकार किया और आत्म कल्याण करने लगी। यहाँ हमें सुभद्रा के भातृप्रेम का उदाहरण प्राप्त होता है । इकलौते भाई की त्याग-वैराग्य भावना से दुःखित होकर वह अपने आँसू भी नहीं रोक सकी। जबकि अपने पति को वैराग्य की प्रेरणा इसी महिला ने दी। भद्रा: राजगृह में धनाढ्य गृहपति गोभद्र की पत्नी का नाम भद्रा था। उनके पुत्र का नाम शालिभद्र तथा पुत्री का नाम सुभद्रा था। जैन साहित्य में वर्णित इस महान् महिला की यशोगाथा का वास्तविक आरम्भ उस समय से होता है, जब पति के असामयिक निधन के कारण भद्रा को न केवल अपने पुत्र, पुत्री के लालन-पालन की जिम्मेदारी निभानी पड़ी, वरन् पति के विस्तीर्ण विकसित वाणिज्य व्यवसाय की देखरेख का भार भी उठाना पड़ा । वात्सल्य प्रेम के कारण भद्रा ने शालिभद्र को व्यापार संचालनादि के दायित्व का भार नहीं सौंपा था। माता ने रूप, गुण तथा शीलयुक्त बत्तीस श्रेष्ठी कन्याओं के साथ अपने इकलौते पुत्र शालिभद्र का विवाह किया और शालिभद्र अपने सप्त खंडी प्रासाद पर अहर्निश सांसारिक सुख भोगने में सतत लीन रहने लगा। भद्रा की असाधारण सूझबूझ तथा व्यावसायिक कुशलता के कारण व्यापार में निरन्तर वृद्धि होती रही। भद्रा की व्यावसायिक संचालन क्षमता व सफलता ने दैवी-चमत्कार की संभावना उत्पन्न कर दी। किंवदन्ती तो यह है कि पति गौभद्र मृत्योपरान्त देव-योनि में उत्पन्न हआ था । वह अपने पुत्र स्नेह के कारण अपने पुत्र एवं पुत्र-वधुओं की सुखसुविधा के लिये वस्त्र और आभूषणों से पूरित तैंतीस पिटारे प्रतिदिन १. (क) त्रिषष्टि शलाकापुरुषचरित पर्व १०, सर्ग १०, पृ० १९३ (ख) श्रीधन्यचरित्र, २. स्थानांगवृत्ति ( अभयदेव ) पृ० ५१०, बृहत्कल्पभाष्य ४२१९, ४२२३, आवश्यकसूत्र पृ० २७, आवश्यकचूणि प्र० पृ० ३७२, राजप्रश्नीयवृत्ति (मलयगिरि) पृ० ११८ आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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