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१२० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएं सुभद्रा के माता-पिता अन्य धर्मावलम्बी से अपनी पुत्री का विवाह करने को इच्छुक नहीं थे अतः बुद्धदास ने जैन धर्म अंगीकार कर लिया तथा सुभद्रा से विवाह किया।
सुभद्रा की ससुराल के सभी सदस्य बौद्ध धर्म के अनुयायी थे । सुभद्रा की जैन धर्म में आस्था रखना तथा पूजा-अर्चना करना उसकी सास को रास नहीं आया, फलतः वह अप्रसन्न होकर बहू के विरुद्ध बुद्धदास को भड़काने लगी परन्तु बुद्धदास को भार्या पर पूर्ण विश्वास था। सुभद्रा जैन धर्म के अनुसार सदाचरण सहित आदर्श गृहिणी के अनुकूल जीवन बिताने लगी।
एक दिन एक श्रमण साधु सुभद्रा के यहाँ भिक्षा हेतु आये । साधु की आँख तिनका पड़ने से लाल हो गई थी, जिससे उन्हें अधिक कष्ट हो रहा था। करुणार्द्र सुभद्रा से यह नहीं देखा गया और साधु के पास बैठकर तिनका निकालने लगी। उसकी सास ऐसे अवसर की खोज में थी ही, उसने पुत्र बुद्धदास को भी यह दृश्य दिखलाया । इससे पति के मन में भी पत्नी के सतीत्व के बारे में शंका उत्पन्न हो गई और वह पत्नी सुभद्रा से अप्रसन्न रहने लगा । पति-प्रेम से वंचित रहने पर सुभद्रा को असह्य व्यथा हई। उसने भगवान् का ध्यान और व्रत उपवास का अनुष्ठान प्रारम्भ किया । वह अपने ऊपर मढ़े गये इस निरर्थक मिथ्या कलंक को मिटाना चाहती थी।
इसी बीच एक अद्भुत घटना घटो । चम्पा नगरी के राजा के महल के दरवाजे बन्द हो गये वे किसी भी उपाय से नहीं खुल रहे थे। ज्योतिषियों ने बताया कि यह कोई दैवी प्रकोप है। यदि कोई पूर्ण पतिव्रता स्त्री कच्चे सूत में चलनी बाँधकर कुएं से पानी निकालकर द्वार पर छिड़के और फिर द्वार खोले तो सम्भव है कि वे खुल जायें।
इस पर राजा ने घोषणा करवाई कि राज्य की सब स्त्रियाँ कच्चे सूत में चलनी बाँधकर कुएँ से पानी निकालने की कोशिश करें। अन्त में राजाज्ञा के अनुसार सुभद्रा भी पानी निकालने गई। एकत्रित सभी महिलाओं ने बड़े आश्चर्य से देखा कि कच्चा सूत टूटे बिना चलनो में पानी आ गया और यह पानी महल के दरवाजे पर छिड़कने से दरवाजे खुल गये । पतिव्रता सुभद्रा धार्मिक आस्था में रहकर अपने धर्म में दृढ़
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