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________________ तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : ११९ को अर्पित की। महावीर ने अनासक्त भाव से औषधि का सेवन किया, जिससे शीघ्र स्वस्थ हो गये। इस शुभ भावना से दिये हुए दान के कारण रेवती श्राविका ने भावी सत्रहवें तीर्थंकर नाम गोत्र कर्म का बन्ध किया । रेवतो ने अपनी सेवा भावना से विशिष्ट स्थान प्राप्त कर अपना जीवन सार्थक किया। उसके द्वारा निर्मित औषधि से महावीर की व्याधि दूर हो गई । रेवती का जीवन धन्य है, सेवा-भावना तथा औषधि विशेषज्ञों में उसका स्थान आदरणीय रहेगा। रेवती-मूल्यांकन : रेवती श्राविका के उदाहरण से यह प्रमाणित होता है कि, उस काल की महिलाएँ औषधि निर्माण में अति निपुण थीं। उस समय के श्रावक-श्राविकाएं साधु जीवन की कठोर दिनचर्या से परिचित थे। रेवती इसी को ध्यान में रखकर विभिन्न तरह की औषधियाँ बनाकर रखती थी ताकि कभी भी श्रमण, मुनि, परिव्राजक आदि के काम आ सके और वे व्याधि से विमुक्त हो सकें। रेवती की उक्त कथा से उसकी त्यागवृत्ति का दर्शन होता है। सुभद्राः __वसन्तपुर के राजा जितशत्रु के अमात्य जिनदास की पुत्री सुभद्रा थी। जिनदास जैन धर्म के अनुयायी थे, इसलिये उन्होंने पुत्री को भी जैन धर्म की छत्र-छाया में पाला-पोसा व शिक्षा देकर बड़ा किया। वह बहुत विनयशील व धर्मानुरागिनी थी । माता-पिता ने किसी सुपात्र जैन धर्मावलम्बी युवक से पुत्री का विवाह करने का विचार किया। उस समय चम्पा नगर में बुद्धदास नामक एक वणिक् रहते थे। उनका सम्पूर्ण परिवार बौद्ध धर्म का अनुयायी था। बुद्धदास सुभद्रा के गुण और सौन्दर्य पर मुग्ध थे और उससे विवाह करना चाहते थे। चूंकि १. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित-पर्व १०, सर्ग ८, पृ० १६९ . २. भगवतीसूत्र, श. १५, सूत्र ५५७, कल्पसूत्रवृत्ति ( धर्मसागर ) पृ० १२७; स्थानांगसूत्र ६९१, स्थानांगवृत्ति (अभयदेव) पृ० ४५६, समवायांगसूत्र १५९। आवश्यकचूणि द्वि० पृ० २६९-७०, आवश्यकनियुक्ति १५-४५, दशाश्रुतस्कंध चूणि पृ० ४८, व्यवहारसूत्रभाष्य तृ० ३७४, स्थानांगवृत्ति (अभयदेव), पृ० २५७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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