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११८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएं तैयार किया, तथा दूसरा बिजोरा पाक भी तैयार किया। उसने मन में यह सोचा कि तीर्थंकर महावीर अपने शिष्य समुदाय के साथ कभी इस ओर विहार करेंगे तब यह विशेष प्रकार से तैयार किया हुआ कूष्मांडफल का पाक उनके पात्र में अर्पित करने का सुअवसर प्राप्त करूँगी। इस प्रकार दान की उत्तम भावनाओं के साथ वह धर्म ध्यान में संलग्न रहो ।'
एक बार तीर्थंकर महावीर अपने शिष्य समुदाय के साथ श्रावस्ती नगरी के मेढ़िया गांव के बाहर सालकोष्टक उद्यान में पधारे। महावीर के शिष्य गोशालक ने क्रोध में आकर त्यागी महापुरुष पर तेजोलेश्याः विद्या का प्रयोग किया। जिससे महावीर को दाह-ज्वर उत्पन्न हुआ तथा अतिसार से पीड़ित हो गये । इस व्याधि से महावीर का शरीर अत्यन्त कृश होने लगा । अपने आचार्य को यह व्याधि देखकर शिष्यगण चिन्तित होकर सन्ताप करने लगे। इस शारीरिक व्याधि की बात सर्वत्र फैल गई
और मालुकाकच्छ में कठिन तपस्या करते हुए भगवान् के शिष्य 'सिंह' अनगार ने भी इस दुःसंवाद को सुना । वे छठ ( दो दिन के उपवास) के साथ कड़ी धूप में आतापना करते थे। वे धर्माचार्य का अनिष्ट होने की कल्पना से रूदन करने लगे। सर्वज्ञ अन्तर्यामी महावीर को जब इसका पता चला तो उन्होंने 'सिंह' अनगार को अपने पास बुलाकर कहा कि, यदि तुम मेरे स्वास्थ्य के बारे में अत्यन्त चिन्तित व दुःखी हो तो तुम मेढ़िया ग्राम में गाथापत्नी रेवती के घर जाओ और उसने जो वायु को उपशान्त करनेवाला बिजौर-पाक बनाया है उसे ले आओ। वह इस रोग निवृत्ति के लिये उपयुक्त है । इस पर अनगार 'सिंह' रेवती के घर पाक लेने गये । श्रमणमुनि को अपने द्वार पर आया देख रेवती ने श्रद्धा से वन्दन किया और प्रभु महावीर का कुशलक्षेम पूछा । तब सिंह श्रमण ने अश्रुपूरित नेत्रों से कहा, हे श्राविका ! अर्हत् प्रभु दाहज्वर से पीड़ित हैं और तुमने जो कुष्मांडफल का पाक उनके लिए विशेष रूप से बनाया है, उसकी आवश्यकता नहीं है, पर जो बिजोरापाक अन्य प्रयोजन के लिए बनाया है, उसकी आवश्यकता है।' आश्चर्यचकित होकर रेवती बोली, 'हे मुनि, किस ज्ञानी व तपस्वी ने मेरे इस गुप्त कार्य व मनोभावों का भेद आपसे कहा है ?' सिंह अनगार ने अपने गुरु के ज्ञान की महिमा बताई । श्राविका रेवती बहुत ही श्रद्धा भाव से वह औषधि 'सिंह अनगार'
१. भगवतीसूत्र-श. १५, सूत्र ५५७
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