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________________ तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ११५ रहते थे। वे महाराजा श्रेणिक के विश्वासपात्र थे। उनकी पत्नी सुलसा श्रेष्ठ गुणों से युक्त, सुशील एवं शान्तचित्त थीं। उन्हें कभी क्रोध नहीं आता था, अन्यान्य सुख होने पर भी उन्हें सन्तान का अभाव सदा खटकता रहता था । नाग रथिक इसे अपने अशुभ कर्मों का उदय मानकर, दान, त्याग और तपस्या आदि धार्मिक कार्यों में विशेष अनुराग रखने लगे। एक बार नाग रथिक पत्र नहीं होने से उदास होकर कर्मों को दोष दे रहे थे। उनकी इस उद्विग्नता का अनुभव कर सुलसा ने नम्रता से कहा-"आर्यपुत्र, आप किसी अन्य कन्या से पाणिग्रहण करके पुत्र प्राप्त करें"। नाग ने उत्तर दिया, "प्रिये, यदि मुझे पुत्र प्राप्त होगा तो तुम्हीं से होगा" | प्रत्युत्तर सुनकर धार्मिक भावना एवं संस्कारों में सर्वथा प्रवृत्त सुलसा ने धर्म ध्यान में अपना मन लगाया तथा आयंबिल का तप करने लगी अर्थात् ऐसा भोजन ग्रहण करने लगी, जिसमें घी, दूध, दही, तेल, मीठा इत्यादि न हो। सहनशीलता की परीक्षा एवं वरदान : सुलसा श्राविका के तप व धर्म में दृढ़ आस्था की चर्चा चारों ओर फैलने लगी। ईर्ष्या व जिज्ञासावश दो साधुओं ने सुलसा की धर्म में दृढ़ता को परीक्षा लेने का विचार किया। इस प्रसंग में आवश्यक चूर्णी में लिखा है, "इन्द्र द्वारा प्रशंसा करने पर दो देवता ब्राह्मण का रूप धारण कर सुलसा की परीक्षा लिए"। मुनियों को अपने घर पर आया देख सुलसा अत्यधिक प्रसन्न हुई । अभ्यर्थना कर उनके आगमन का कारण पूछा। साधुओं ने कहा, "हमारे साथ एक रोगी साध है, उसके उपचार के लिये 'लक्षपाक तेल' की आवश्यकता है" । सुलसा हर्षित हो तेल का कुम्भ (घड़ा) लेने अन्दर के कक्ष में गई । घड़ा उठाते हो वह अकस्मात् छूटकर नीचे गिर पड़ा । इस प्रकार बहुमूल्य तेल के तीन घड़े गिर पड़े। इस पर भी उसे तनिक भी क्रोध उत्पन्न नहीं हुआ । परन्तु उसे मुनि के पात्र में तेल न पहुँचने का अत्यन्त क्षोभ हो रहा था। सुलसा की इस अपूर्व क्षमाशीलता को देखकर मुनि बहुत प्रसन्न हुए और आशीर्वाद दिये तथा पुत्र प्राप्ति के लिये ३२ विशिष्ट गोलियाँ देकर कहा कि तुम्हें ३२ लक्षणों वाले ३२ पुत्र प्राप्त होंगे । पुत्र वरदान प्राप्त होने पर सुलसा हर्षित हुई। सुलसा ने पूर्ण श्रद्धा, विश्वास, भक्तिभाव से उन गोलियों का सेवन किया पर उसे एक-एक न खाते हुए ३२ गोलियाँ एक साथ ले लो। परिणामस्वरूप उन्होंने ३२ लक्षणों वाले ३२ पुत्रों को जन्म दिया। १. त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित पर्व १०, सर्ग ६, पृ० १०६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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