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________________ ११४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएं दिया । पुत्र के वयस्क होने पर अपनी पत्नी से अनुमति लेकर आर्द्रकुमार पुनः प्रवजित हुए। उपर्युक्त कथानक से श्रीमती की दृढ़ संकल्पशक्ति तथा स्वावलम्बी प्रवृत्ति का उदाहरण प्रस्तुत होता है । श्रीमती अपने पुत्र का लालन-पालन करते हुए धर्म ध्यान में अपना समय व्यतीत करने लगी। उत्पलार : उत्पला श्रावस्ती नगर के श्रेष्ठी शंख की विदुषी भार्या थी । वह पति की भाँति ही सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तथा सम्यकचारित्र का पालन करती थी। उसे जीव-अजीव, पुण्य-पाप, आस्रव-संवर, निर्जरा-बंध एवं मोक्ष इन नौ तत्त्वों का गहरा ज्ञान था। पति शंख एवं उनके मित्रों के साथ होने वाली धर्म-चर्चा को उत्पला बहुत ध्यान से सुना करती थी। एक बार शंख श्रावक ने पुष्कली श्रावक के साथ पौषध करने का निश्चय किया । इसी उद्देश्य से पुष्कली श्रावक शंख श्रावक को बुलाने उनके घर गये । पति के मित्र को आता हुआ देखकर उत्पला हर्षित हुई और अपने आसन से उठकर नमस्कार कर आवभगत की एवं बैठने के लिये आसन दिया। विनीत भाव से उसने पूष्कली श्रावक से आगमन का प्रयोजन जानना चाहा। इस पर वे बोले-'हे देवानुप्रिये ! हम शंख श्रावक के साथ पौषध करने के इच्छुक हैं, वे कहां गये हुए हैं"। मित्रपत्नी के विनय युक्त व्यवहार से सन्तुष्ट होकर पुष्कल श्रावक पौषधशाला की ओर चल दिया। पति की अनुपस्थिति में अतिथि को सत्कार देकर उचित निर्देशन देना भी महिलाएं करती थीं। इस दृष्टान्त से नारी स्वतंत्रता की झलक प्राप्त होती है। सुलसा : राजा श्रेणिक के नगर राजगृह (भद्दिलपुर) में नाग नामक रथिक १. त्रिषष्टिशलाकापुरुष चरित्र, पृ० १३९ २. भगवतीसूत्र ४३७, स्थानांग वृत्ति (अभयदेव), पृ० ४५६ ३. भगवतीसूत्र-११-२२-३-१ ४. आवश्यकचूणि प्र०, पृ० १५९, आचारांगचूणि पृ० ३३, कल्पसूत्र, सूत्र १३७, दशाश्रतस्कंधणि १० ९६, १०२, निशीथभाष्य ३२, आवश्यकवृत्ति (मलयगिरि) पृ० २०९, व्यवहारसूत्र प्र० पृ० २७, प्रज्ञापनावृत्ति (मलय) पृ० ६१, स्थानांगवृत्ति (अभयदेव) पृ० ४५८, समवायांग, सूत्र १५९ इत्यादि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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