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११६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएं कालान्तर में सब विद्याओं में पारंगत हुए ३२ पुत्रों को राजा श्रेणिक ने अपने अंगरक्षक के स्थान पर नियुक्त किया।
एक समय अपने अंगरक्षकों के साथ राजा श्रेणिक वैशाली में सुज्येष्ठा का अपहरण करने गये । वहाँ सुरंग के गहन अंधकार में स्वामिभक्त अंगरक्षकों की मृत्यु हो गई । बत्तीस वोर पुत्रों की जननी सुलसा इस समाचार से मृतप्राय हो गई। वर्षों बाद धर्मनिष्ठा तथा तपस्या के फलस्वरूप पुत्र रत्नों की प्राप्ति और उसके पश्चात् पूर्ण युवावस्था में उनकी आकस्मिक मृत्यु, एक माता कैसे सहन कर सकती थो? सुलसा के धैर्य को धन्य है कि धर्म में अटूट श्रद्धा होने से उसने इस वज्रपात को भी सहन किया तथा धर्म में और दृढ़ हो गई। कर्मों की लीला विचित्र है ? राजा श्रेणिक के महामंत्री अभयकुमार स्वयं सुलसा श्राविका को सान्त्वना देने गये और उसके पुत्रों के शौर्य को भूरि-भूरि प्रशंसा की। ____समकित को परीक्षा : कुछ समय पश्चात् तीर्थंकर भगवान् महावीर का आगमन चम्पा नगरी में हुआ । वहाँ उन्होंने देशना दी। देशना के पूर्ण होने पर राजगृही के अम्बड़ परिव्राजक ने खड़े होकर वन्दन किया व कहा—'भगवन्, आपकी धर्मदेशना सुन मेरा जन्म सफल हो गया, मैं राजगृही जा रहा हूँ।' महावीर ने कहा-'राजगृही में सुलसा नाम की श्राविका को 'धर्मलाभ' कहना।
सुलसा के इस अहोभाग्य पर अम्बड़ परिव्राजक आश्चर्यचकित हो गया तथा सुलसा के सम्यक्त्व की परीक्षा लेने का निश्चय किया। यह निश्चय कर अम्बड़ ने संन्यासी का रूप धारण किया व सुलसा के घर जाकर भोजन मांगा । सुलसा ने सम्यक साधुओं को ही भोजन देने का प्रण किया था अतः उसने भोजन नहीं दिया । उसने अपने ज्ञान द्वारा कई प्रकार के विचित्र वेश धारण कर सुलसा को भुलावा देने की कोशिश की पर उस पर कोई प्रभाव नहीं हुआ। वह अपने विश्वास पर दृढ़ रही। अन्त में उसने जैन मुनि का रूप धारण कर नमोक्कार मन्त्र का उच्चारण करते हुए सुलसा के गृह में प्रवेश किया। सुलसा ने मुनि जानकर उचित सम्मान किया । तदुपरान्त अम्बड़ ने अपना परिचय देते हुए सुलसा के दृढ़ समकित व भगवान् महावीर पर दृढ़ विश्वास की बहुत प्रशंसा की। उसे महावीर द्वारा कहे गये धर्मलाभ का सन्देश दिया । अपने आपको
१. वही, पर्व १०, सर्ग ६, पृ० ११४
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