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________________ तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएं : १०७० "बारह व्रत" अंगीकार किये हैं, तुम भी शीघ्र जाओ और प्रभु से श्राविका के कल्याणकारी व्रत ग्रहण करो।" पति की आज्ञानुसार धन्या उपयुक्त वस्त्राभूषण से विभूषित होकर समवसरण में जाकर तीर्थंकर महावीर से विनयपूर्वक कही, "हे सर्वज्ञ, मैं संमार का सर्वथा त्याग तो नहीं कर सकती, किन्तु मैं गृहस्थ जीवन के साथ व्रत अंगीकार करना चाहती हूँ। तीर्थंकर महावीर ने धन्या श्राविका को गृहस्थ जीवन में पालन करने वाले कल्याणकारी व्रतों के महत्त्व को समझाया । धन्या ने व्रतों को अंगीकार किया और हर्षित होती हुई स्वगृह चली आई। __ एक समय सुरादेव पौषधशाला में धर्म-ध्यान में लीन थे, उस समय देव ने कई प्रकार से विघ्न उपस्थित किये जिससे कुछ समय के लिये सुरादेव का ध्यान विचलित हआ, पर पत्नी धन्या ने उन्हें पूनः धर्म में स्थित किया। अतः धन्या श्राविका ने पति को श्रावक के व्रत-नियमों का पालन करने में सम्पूर्ण निष्ठा से सहयोग दिया तथा स्वयं भी श्रमणो-- पासिका के नियमों का पालन करती हुई आत्म कल्याण में प्रवृत्त रही। बहुला' : चुल्लशतक आलंभिका नगर के समृद्ध और प्रतिष्ठित श्रेष्ठी थे ।' उनकी धर्मपत्नी बहला धर्मपरायणा थी। एक बार शंखवन में भगवान् महावीर का आगमन हुआ। श्रावक कामदेव की भांति श्रेष्ठी चुल्लशतक, महावीर के दर्शन व उपदेश श्रवण के लिये उत्कंठा के साथ पहुंचे। महावीर के उपदेशों का श्रवण कर श्रेष्ठी ने श्रद्धा व विश्वास के साथ बारह व्रतों को अंगीकार कर अपनो सम्पत्ति की सीमा नियत कर दी। जब वे स्वगृह आये तो पत्नी बहला को समवसरण में धर्म उपदेश सुनने जाने की प्रेरणा दी। वह धर्म परिषद् में पहुँची और महावीर से श्राविका के बारह व्रत अंगीकार कर अपने जीवन का आत्मकल्याण करने लगी। पुष्पा : कांपिल्य नगर में श्रेष्ठी कुण्डकौलिक गाथापति की पत्नी पुष्पा थी। १. पू० घासीलालजी, उपासकदशांग, अ० ५, सूत्र १५१, पृ० ४१५: २. उपासकदशांग, सू० ३४ ३. पू० घासीलालजी, उपासकदशांग, अ० ५, सूत्र १५८, पृ० ४१९ ४. उपासकदशांग, सू० ३५-३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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