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१०६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ
पाँच अणुव्रत और सात शिक्षाव्रत इस तरह बारह व्रतों वाला गार्हस्थ्य धर्म स्वीकार करें ।”
श्यामा अपने पति की प्रेरणा से अपनी सेविकाओं सहित रथ में बैठ-कर महावीर की परिषद् में पहुँची । श्यामा ने महावीर की श्रद्धापूर्वक तीन बार प्रदक्षिणा की। महावोर के सम्मुख विनयावनत् होकर उनसे कहा - " प्रभु ! मैं गार्हस्थ्य धर्म के बारह व्रत अंगीकार करने की इच्छुक हूँ ।" महावीर ने इसे स्वीकृति प्रदान की । श्यामा ने अपने पति की भाँति बारह व्रतों को अंगीकार किया । हर्षित मन से वह अपने निवास को लौट आई ।
एक बार श्रावक चुलनीपिता पोषधशाला में धर्मसाधना में मग्न थे । रात्रि को उपसर्ग (देव बाधा) का सामना करना पड़ा । देव द्वारा चेतावनी दी गई कि माता भद्रा को मारेंगे। इससे श्रेष्ठी के ध्यान में तनिक व्यव -- धान उपस्थित हो गया । माता भद्रा ने चुलनीपिता को आश्वस्त किया कि वे स्वस्थ हैं । उन्होंने चुलनीपिता को विश्वास दिलाया कि वे अपने ध्यान-साधना से विचलित न हों । फलतः श्रेष्ठी पुनः दृढ़ता से आराधना कार्य में मग्न हो गया !
उन्होंने अपने गृहस्थ जीवन में बारह व्रतों का पालन सुचारु रूप से चौदह-पन्द्रह वर्षों तक किया । तदनन्तर अपने ज्येष्ठ पुत्र को कुटुम्ब के दायित्व का भार सौंपकर श्रेष्ठी चुलनीपिता पत्नी श्यामा के साथ सांसा -- रिक भार से निवृत्त हुए ।
बीस वर्षों तक धर्म का पालन करते हुए उन्होंने आत्मा को पवित्र किया ।"
धन्या :
बनारस के संपत्तिशाली श्रेष्ठी सुरादेव की धर्मपरायणा पत्नी का नाम धन्या था । तीर्थंकर महावीर का कोष्टक चैत्य में आगमन सुनकर सुरादेव भी आनंद श्रावक के समान प्रभु के वंदनार्थ गये । उन्होंने महावीर स्वामी के " बारह व्रत" अंगीकार किये । सुरादेव ने अपनी विपुल सम्पत्ति की सीमा निर्धारित की और धर्मोपदेना श्रवण कर अपने निवास को लौटे तथा अपनी सहधर्मिणी धन्या से बोले, "हे देवानुप्रिये ! मैंने श्रावक के १. पू० घासीलालजी - उपासकदशांगसूत्र, अध्ययन ३, पृ० ३९५-३९६ २. वही, सूत्र ० ३०
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