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तीर्थंकर महावीर के युग को जैन साध्वियां एवं विदुषो महिलाएं : १०५ कुछ समय पश्चात् चम्पानगरी के पूर्णभद्र चैत्य में भगवान् महावीर का आगमन हआ। आगमन का समाचार फैलते ही अपार जनसमुदाय उनके दर्शनार्थ वहाँ जमा हो गया । श्रेष्ठो कामदेव भी बड़ी आतुरता और श्रद्धा से नगर निवासियों के साथ महावीर स्वामी के दर्शनार्थ वहाँ गये। वहाँ उन्होंने अर्हन्त धर्म के सिद्धान्तों का ध्यानपूर्वक श्रवण और मनन किया। उन्होंने महावीर स्वामी से श्रावक के बारह व्रतों को जोवन के लिये अंगीकार किया । वे आनन्द-उल्लास के साथ अपने घर आये। उन्होंने अणुव्रतों को ग्रहण करने की बात अपनी सहमिणी भद्रा से कही तथा उसे प्रेरित करते हए उन्होंने कहा-'मैंने तीर्थंकर महावीर के कल्याणप्रद उपदेशों को अपने लिये अंगीकार किया है। उनके उपदेशों से आत्मकल्याण संभव है, तुम भी ऐसा करो' ।।
पति से प्रेरणा पाकर भद्रा, सुन्दर वस्त्र आभूषणों से युक्त रथ में बैठकर महावीर की धर्म परिषद् में गई। महावीर स्वामी से सच्चे धर्म की व्याख्या सूनकर उन्हें आत्म सन्तुष्टि हुई। अपार वैभव के स्वामी श्रेष्ठी कामदेव की पत्नी श्रेष्ठिनी भद्रा ने भगवान् महावीर से गार्हस्थ्य धर्म के बारह व्रतों को अंगीकार किया। उपदेशों का इतना प्रभाव हुआ कि वह वैराग्य भाव से आराधना में संलग्न हो गई। बीस वर्षों तक श्राविका पर्याय का पालन कर धर्मानुकूल जोवन व्यतीत किया ।' श्यामा : __ वाराणसी में श्रेष्ठी चुलनीपिता रहते थे, उनको सहमिणी श्यामा न केवल रूप व गुण में अद्वितीय थो अपितु व्यवहार कुशल भी थी।
किसी समय तीर्थंकर महावीर के आगमन का संदेश पाकर असीम उत्साह से श्रेष्ठी चुलनीपिता कोष्टक चैत्य में गये । भगवान् महावीर की धर्मदेशना का उन पर अत्यन्त प्रभाव हुआ । वे प्रफुल्ल मन से अपने घर आये और धर्मपत्नी श्यामा को विवरण बताते हुए कहा-"मैंने वीतरागी महावीर के धर्म सिद्धान्तों को मान्य कर लिया है, वे सिद्धान्त वास्तव में जीवन को सार्थक करने वाले हैं।" श्रेष्ठो ने अपनी पत्नी को प्रेरित किया कि वह भी जाकर भगवान् महावीर का विधिपूर्वक वन्दन कर धर्मदेशना का श्रवण करे। श्यामा से उन्होंने कहा-"वे चैत्य में जाकर
१. पू० घासीलालजी-उपासकदशांगसूत्र, अध्याय २, सूत्र ९१-९३, पृ० ३६१ २. उपासकदशा सू० २७
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