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तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : १०३ हैं, उनका सोना अच्छा । इसके विपरीत जो धर्म की आराधना करते हैं उनका जागना अच्छा है । फिर जयन्ती ने पूछा-'भगवन् । जीवों की दुर्बलता अच्छी या सबलता।' 'जीवों का दक्ष और उद्यमी रहना अच्छा है या आलसी होना?' भगवान् ने कहा कि जो जीव धार्मिक हैं, धर्म करके स्वयं का उद्धार करता है, दूसरों के दुःख व कष्ट कम करने में मदद करता है उसका सबल रहना उचित है। उसके विपरीत जो अधार्मिक हैं तथा अधर्म से जीविकोपार्जन करते हैं उनका दुर्बल रहना ही अच्छा है। उन्होंने आगे कहा कि धर्माचरण तथा उपकार करनेवाले जीव का उद्यमी रहना उचित है। इसके विपरीत जो जीव अधर्मानुसार विचरण करता है उसका आलसी होना अच्छा है ।
जयन्ती-मूल्यांकन : इन प्रश्नोत्तर से हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि आज से २५०० वर्ष पहले भी कुछ महिलाएँ धर्म के तत्त्व को समझने को उत्सूक थी तथा विशिष्ट ज्ञान प्राप्त धर्म गुरू से निःसंकोच होकर अपनी शंकाओं का समाधान किया करती थीं । देश, काल एवं समय की परिधि, ज्ञान प्राप्त करने में बाधक नहीं हो सकती थी। जयन्ती ने ऐसे गढ़ तत्त्वों का विवेचन कर उस समय की विदुषी महिलाओं का प्रतिनिधित्व किया है । यहाँ हमें वैदिक साहित्य की गार्गी वाचकव्वी का उल्लेख उपयुक्त प्रतीत होता है। वह भी तत्त्व ज्ञान की चर्चा करती थी तथा अच्छे-अच्छे ऋषि-मुनियों को अपने गहन ज्ञान से प्रभावित करती थी। वह आत्मज्ञान की इतनी गहराई तक पहुंच गई थी कि उसे देह का भी भान नहीं रहता था। शिवानन्दा :
वाणिज्य ग्राम के शासक जितशत्रु के राज्य में, शिवानन्दा अपने पति आनन्द के साथ सुखमय जीवन व्यतीत करती थी। एक समय वाणिज्य राज्य के शासक जितशत्रु महावीर के आगमन पर उनका दर्शन करने गये । आनन्द की कीर्ति चारों ओर फैली हुई थी। उनकी पत्नी शिवानन्दा एक सुशील, शान्त, सौम्य, सहिष्णु, मधुरभाषी, स्नेहशील, चतुर और सुन्दर नारी थीं। शिवानन्दा के अतिरिक्त आनन्द श्रेष्ठी की और भी पत्नियाँ थीं, फिर भी शिवानन्दा और आनन्द का दाम्पत्य जीवन अत्यन्त १. जगदीशचन्द्र जैन-लाइफ़ इन एंसिएण्ट इण्डिया, पृ० ५२ २. उपासकदशांग, सू० ३
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