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तीर्थकर महावीर के युग को जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : ९९ व्यतीत करने लगी । शनैः शनैः सब कलाओं में निपुणता प्राप्त कर यौवन वय में प्रवेश किया। ___ महामंत्री अभयकुमार को योग्य वर जानकर, राजा श्रेणिक ने बहन की आत्मजा सुसेनांगजा से बहुत धूमधाम से विवाह किया । अभयकुमार की रानी बनकर इस नारी ने उनके कठिन तथा विचित्र कार्यों में कई प्रकार से सहायता की। विलक्षण बुद्धि व प्रतिभावान् पति प्राप्त होने से इस राजमहिषि ने अपने जीवन को धन्य बनाया। अर्हत् धर्म में दोनों पति-पत्नी अनुराग रखते थे। तीर्थंकर महावीर के उपदेशों को जीवन में
आत्मसात् कर तदनुकूल आचरण करते थे। 'पद्मावती :
तेतलिपुर नगर के राजा कनकरथ की रानी पद्मावती अर्हत् धर्म पर आस्था रखती थी और राजा को भी इस ओर मोड़ना चाहती थी। कनकरथ राजा अपने राज्य तथा विभिन्न प्रकार के भौतिक साधनों में लिप्त रहते थे। वे इस भौतिक ऐश्वर्य को रंचमात्र भी छोड़ना नहीं चाहते थे। उन्हें इस बात को चिन्ता थी कि यदि पुत्र हुआ तो वह मुझे सिंहा. सनच्युत करके स्वयं राज्य का स्वामी बनेगा। अतः स्वनिर्मित इस आंतरिक भय के कारण वह रानी पद्मावती के जो भी पूत्र पैदा होते थे, उन्हें जन्म के समय ही विकलांग कर देता था। क्योंकि उस समय को व्यवस्था के अनुसार विकलांग (खंडित) व्यक्ति राज्य का अधिकारी नहीं हो सकता था। ___ अपने पुत्रों को इस प्रकार विकलांग किये जाने से रानी अर्थात् पदमावती को अत्यधिक कष्ट होता था। वह पुत्र वात्सल्य के कारण दुःखी होकर अपने होनेवाले शिशु की सुरक्षा के लिये सोचने लगी। उसने राज्य के विश्वासपात्र अमात्य तेतलोपुत्र से इस बारे में चर्चा की। अमात्य ने रानी को आश्वासन दिया कि राजपुत्र को जन्म लेते ही सुरक्षित स्थान पर पहँचा देंगे ताकि तेतलोपुराधिपति अपने नवजात शिशु को विकलांग न कर सके। ____ गर्भवती रानी ने जब राजपुत्र को जन्म दिया तो एक विश्वासपात्र धायमाता के साथ उस नवजात शिशु को अमात्य तेतलीपुत्र के यहाँ
१. त्रिशष्टिशलाकापुरुषचरित, पर्व १०, सर्ग ६, पृ० ११० २. ज्ञाताधर्मकथा सूत्र ९६, आवश्यकचूणि प्र० पृ० ४९९
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