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________________ ९८ : जैनधर्म को प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं लेकर एक मास की सल्लेखना की। इसने १६ वर्ष तक चारित्र का पालन किया। महासेनकृष्णा : श्रेणिक राजा की दसवीं रानी का नाम महासेनकृष्णा था। अपने पुत्र की मृत्यु का सन्देश पाकर उसे संसार से विरक्ति हुई तथा आर्या चन्दनबाला के पास दीक्षा लेकर "आयंविल वर्द्धमान तप" करना शुरू कर दिया। महासेनकृष्णा आर्या ने इस तप को शास्त्रोक्त विधि से किया तथा अन्य भी बहुत प्रकार के तप कर सामायिकादि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। कुछ समय पश्चात् आर्या चन्दनबाला से आज्ञा लकर सल्लेखना की। मरण की वांछा न करती हुई तथा आर्या चन्दनबाला के पास पड़े हुए ग्यारह अंगों का स्मरण करती हुई धर्म ध्यान में तल्लीन रहने लगो। एक महीने का संथारा कर केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त कर मुक्त हुई । इसने १७ वर्ष तक संयम का शुद्धभाव से पालन किया । सुसेनांगजा : सुसेनांगजा राजगृह के राजा श्रेणिक की बहिन सुसेना की इकलौती पुत्री थी। बहन सुसेना का विवाह श्रेणिक ने अपने परम मित्र विद्याधर के साथ किया था। सुसेनागंजा बाल्यकाल में ही माता की गोद से वंचित हो गई। पत्नी सुसेना की मृत्यु के बाद पुत्री सुसेनांगजा के उचित पालनपोषण हेतु उसके पिता चिन्तातुर रहते थे । अतः अपनी प्रिय पत्नी सुसेना की एकमात्र निशानी, पुत्री की रक्षा के लिये पिता ने राजा श्रेणिक से कहा “हे राजन् ! मैं अपनी इकलौती पुत्री को तुम्हारे संरक्षण में छोड़ता हूँ, तुम्हारी बहन की यही एक स्मृति है, तुम्हों इसका योग्य पालन-पोषण कर सकोगे।"४ बहन सुसेना की पुत्री श्रेणिक के अन्तःपुर में अपना बाल्यकाल १. एम० सी० मोदी-अंतगड दसाओ-अट्ठमो वग्गो, सूत्र २५, पृ० ६१-६२ २. अन्तकृद्दशा सू० २६ ३. (क) निरयावली अध्ययन, पृ० ६० (ख) एम० सी० मोदी-अंतगडदसाओ-अट्ठमो वग्गो, सूत्र २६, पृ० ६४ ४. उपा० श्रीमत् चन्द्रतिलकजी-अभयकुमार मंत्रीश्वर का जीवन चरित्र-१५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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