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१०० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाएं पहुँचा दिया तथा उसके स्थान पर तेतलीपुत्र की मृत कन्या को लाकर रानी के पास सुला दिया। धायमाता ने राजा को सन्देश दिया कि रानी ने एक मृत कन्या को जन्म दिया है। अमात्य तेतलोपूत्र ने यह सब वृत्तान्त अपनी पत्नी पोट्टिला को पहले हो बता दिया था। पोटिला भी आनन्दित होकर राजपुत्र का पालन-पोषण करने में कोई कसर नहीं रखती थी। चूंकि यह बालक राजा कनकरथ का पुत्र था इसलिये इसका नाम कनकध्वज रखा । धीरे-धीरे बालक बड़ा हुआ और सर्वकलाओं में पारंगत हुआ।
कुछ समय पश्चात् राजा कनकरथ की मृत्यु हो गई। नगर निवासी तैतलीपुत्र अमात्य के कार्य की प्रशंसा करते हुए उनके पुत्र को राजगद्दी पर बैठने की याचना करने लगे। इस पर नगरजनों के सामने अमात्य ने सच्ची घटना को कह सुनाया और यह कुमार राजा कनकरथ तथा पद्मावती का आत्मज है यह विश्वास दिलाया । कुमार का परिचय प्राप्त होने पर नगरवासी अत्यन्त हषित हुए और राज लक्षणों से युक्त कुमार का राज्याभिषेक किया।'
राजा कनकध्वज भी सुचारु रूप से राज्य का पालन करता हुआ आनन्द से जीवन व्यतीत करने लगा।
पदमावती-मल्यांकन अपनी संतान की सुरक्षा के लिये माता ने असत्य का सहारा लिया तथा पुत्र को योग्य बनाकर राज्य कार्य में संलग्न किया। उस काल में राजा अपनी राज्य लिप्सा को तृप्त करने के लिए कोई भी घोर अपराध करने में संकोच नहीं करते थे । पुत्र वात्सल्य के वशीभूत होकर रानी ने बड़ी चतुरता से पुत्र का संरक्षण कर उसे राज्य का अधिकारी बनाया । जयन्ती:
महावीर कालीन राजमहिषियों में तत्त्व चिंतक जयन्ती का नाम बहत आदर के साथ लिया जाता है। जयन्ती वत्स देश की राजधानी कौशाम्बी के सहस्त्रानीक राजा की पुत्री, शतानीक राजा की भगिनो १. आ. आनन्द ऋषिजी म.-शोभाचन्द्र भारिल्ल श्रीमद् ज्ञाताधर्मकथांग,
पृ० ४०६-४०८ २. आवश्यक पृ० २८, भगवती ४४१-३, भगवतीवृत्ति पृ० ५५८
बृहत्कल्पभाष्य, ३३८६
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