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________________ ९४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं "हे देवानुप्रिय ! तुम्हारा पुत्र युद्ध में मारा गया है।" पुत्र वियोग से दुःखी माता को महावीर ने संसार की नश्वरता तथा संयोग-वियोग के सम्बन्ध में उपदेश दिया । पुत्र की अकाल मृत्यु ने माता का हृदय परिवर्तित कर दिया । रानी संसार के सुख वैभव से विमुख होकर त्याग और वैराग्य मार्ग अपनाने के लिये तत्पर हो गई । तीर्थंकर महावीर से प्रव्रज्या ग्रहण कर काली रानी आर्या चन्दना के साध्वी संघ में सम्मिलित होकर अपना जीवन सार्थक करने लगी। इस प्रकार दीक्षित होने के पश्चात् साध्वी काली कठोर तपस्या कर कर्मों की निर्जरा करने लगी। आत्मशक्ति का यह अद्भुत परिचय भारतीय नारियों में कूट-कूट कर भरा है जिसकी झलक आज तक हमें दिखाई देती है। एक दिन साध्वी काली ने आर्या चन्दना से पूछा कि आप आज्ञा दें तो मैं 'रत्नावली तप' करूं। आर्या चन्दना की अनुमति प्राप्त होने पर उन्होंने 'रत्नावली तप' प्रारम्भ किया। इस कठोर तपस्या से साध्वी काली का देह अत्यन्त क्षीण हो गया। उसके शरीर का रक्त और मांस सूख गया, शरीर मात्र हड्डियों को ढाँचा रह गया। शरीर के सूख जाने पर भी भस्म से आच्छादित अग्नि के समान उनका शरीस्तेजस्वी लगता था। एक दिन अपने शरीर की शक्ति क्षीण होते देख साध्वी काली ने विधिपूर्वक सल्लेखना (अन्न, जल का त्याग) लेने का संकल्प किया । आर्या चन्दनबाला से आज्ञा प्राप्त कर उन्होंने सल्लेखना व्रत लिया। काली साध्वी ने आठ वर्ष तक चारित्र पर्याय का पालन कर उत्कृष्ट तपस्या से कर्मों का क्षय करके अन्त में एक मास की सल्लेखना विधि से प्राण त्याग कर सिद्ध गति को प्राप्त किया।' सुकाली : चम्पा नगरी के राजा कूणिक की माता सुकाली राजगह के राजा श्रेणिक की रानी थी। अपने पुत्र सुकालकुमार की मृत्यु का समाचार सुनकर सुकाली को वैराग्य उत्पन्न हुआ और उन्होंने आर्या चन्दनबाला के पास दीक्षा ग्रहण को तथा सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया। सुकाली ने कनकावली नामक तप प्रारम्भ किया। इसकी एक परिपाटी में एक वर्ष पाँच माह व अट्ठारह दिन लगते हैं। १. एम० सी० मोदी-अन्तगड़दसाओ-अट्ठमो वग्गो, सूत्र १७, पृ० ५३-५६ २. निरयावलिका २. २, अन्तकृद्दशा १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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