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तीथंकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ९३ महारानी पृथा धार्मिक कार्यों में राजा चेटक को पूर्ण सहयोग देती थीं। उनके साहस व उदात्त गुणों का प्रवाह उनकी पुत्रियों के जीवन में भी स्पष्ट परिलक्षित होता है। उन्होंने जीवन को कई कठिन समस्याओं का बहुत वीरता से सामना किया और सतीत्व-रक्षा के लिये प्राणों का भो मोह त्याग दिया । अतः वे सभी कन्याएँ वीर व धर्म परायणा थीं, जिनका. तत्कालीन महिला समाज पर बहत प्रभाव था। पद्मावती, मगावती आदि कन्याओं की वीरता एवं धार्मिक गुणों के कारण तत्कालीन महिला समाज में रानी पृथा को भी सम्मानित स्थान प्राप्त था। जैन धर्म के इतिहास में इनकी गौरव गाथा स्वर्णाक्षरों से लिखी गई है।
पृथा-मूल्यांकन महारानी पृथा का जोवन यह बोध कराता है कि संतानों का दायित्व पति-पत्नी दोनों का तो है ही किन्तु माता का दायित्व सन्तान के प्रति पिता से भी बढ़कर है । माता संतान की प्रथम गुरु है और उसकी शिक्षादीक्षा के अनुरूप ही सन्तान अपने जीवन निर्माण करने की ओर अग्रसर होती है । एक सच्ची सहधर्मिणी का दर्शन निश्चय ही महारानी पृथा के जीवन से होता है। काली:
राजगृही के राजा श्रेणिक की रानी काली कूणिक (अजातशत्रु) की विमाता एवं कालकुमार की धर्मपरायणा माता थी। राजा श्रेणिक की मृत्यु के पश्चात् अपना समय धर्मध्यान में व्यतीत करती थी।
एक समय तीर्थंकर महावीर विभिन्न नगरों व ग्रामों में धर्मदेशना देते हुए चम्पानगरी के पूर्णभद्र चैत्य (उद्यान) में पधारे । उनके आगमन का शभ सन्देश नगर में फैलते ही, नागरिक तथा राजा के अन्तःपुर की राजमहिषियाँ भी त्रिकालदर्शी महावीर के दर्शन तथा प्रवचन श्रवण करने के लिए गई। देशना के अनन्तर अनुकूल अवसर देख काली रानी ने विनयपूर्वक जिज्ञासा व्यक्त की "हे भगवन् ! कालकुमार युद्ध में गये हुए हैं, क्या वे सकुशल वापस लौटेंगे ?" ।
पुत्र स्नेह से व्याकुल रानी के इस प्रश्न के उत्तर में महावीर ने कहा .
१. अन्तकृद्दशा १७, निरयावलिका १-१, आवश्यकवृत्ति, पृ० ६८७
गच्छाचार प्रकीर्णकवृत्ति, पृ० ३१, उत्तराध्ययनसूत्र, पृ० ८४ २. कूणिक ने राजगृह के स्थान पर चम्पा को अपनी राजधानी बनाया था।
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