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________________ ९२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएं कर ग्लानि हुई, अतः वह चिंतन की गहराई में डूब गई। भौतिक जीवन की क्षणभंगुरता को देख उसने राजा श्रेणिक से दीक्षित होने की इच्छा प्रकट की। राजा ने राजसी वैभवपूर्वक दीक्षा महोत्सव का आयो. जन किया। रानी दुर्गन्धा साध्वी बनकर आचार्या चन्दना के साध्वी संघ में सम्मिलित होकर आत्म कल्याण में प्रवृत्त रहने लगी।' दुर्गन्धा-मूल्यांकन प्रव्रज्या के अनन्तर जीवन को सुरभि एक अलग प्रकार की होती है, मलिनता का प्रश्न शेष नहीं रह जाता। बोधता अथवा अबोधता के कारण जीवनमात्र के प्रति मन में घृणा का भाव उत्पन्न न होने पाये, यह सब अभ्यास पर निर्भर है। दुर्गन्धा का जीवन भी इसी प्रकार की भावना इंगित करता है जो कि 'वसुधैव कुटुम्बकम्' के निकट ले जाती है। पृथा : वैशाली गणराज्य के अध्यक्ष चेटक की रानी पृथा' सात विदुषी कन्याओं तथा दस वीर पुत्रों की माता थी । माता की अद्भुत सूझ-बुझ के कारण सातों कन्याओं ने विभिन्न कलाओं में शिक्षा व निपुणता प्राप्त की, तत्कालीन समाज में, त्याग, तपस्या तथा सेवा के कारण इन कन्याओं का नाम व यश चारों ओर फैला हुआ था। रानी पृथा व राजा चेटक श्रमण धर्म के उपासक थे। राजा निष्ठा व दृढ़तापूर्वक श्रमण धर्म के बारह व्रतों का पालन करते थे। धर्म के सिद्धान्तों को आचरण में लाने को तत्पर रहते थे। इन्हीं व्रतों के पालन में वे आरंभ-सारंभ वाले कार्यों से दूर रहते थे। अपनी विभिन्न कलाओं में निपुण कन्याओं के विवाह के लिये भी वे उदासीन रहते थे । रानी ने कई प्रकार से राजा को इस दायित्व निर्वाह के लिये समझाया पर राजा ने इस कार्य में अधिक उत्साह नहीं दिखाया, क्योंकि विवाह आदि संसारवृद्धि के आयोजनों से दूर रहने का वे प्रण ले चुके थे। अन्ततोगत्वा रानी पृथा ने यह जिम्मेदारी स्वयं वहन करने का निश्चय किया और अपनी पाँचों कन्याओं का निकटवर्ती राज्य के प्रसिद्ध राजाओं से विवाह किया । १. त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०, सर्ग ७, पृ० १३१-१३३ २. दिगम्बर परंपरा में चेटक की रानी का 'सुभद्रा' नामोल्लेख है। __'विरजिणिंद चरिउ' ३. त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०, सर्ग ६, पृ० १११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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