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________________ तीर्थंकर महावीर के युग की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : ८५ माता धारिणी ने अनेक प्रकार से समझाया लेकिन मेघकुमार अपने संकल्प से तनिक भी नहीं डिगे । उन्होंने भगवान् महावीर के सान्निध्य में प्रव्रज्या अंगीकार की । उनके साथ उनकी आठों रानियों ने भी दीक्षा ग्रहण की। मेघकुमार माता धारिणी के एकमात्र पुत्र थे, पुत्र के प्रव्रज्या ग्रहण करने के संकल्प से स्वाभाविक रूप से उन्हें व्यथा हुई । आँखों में ममताश्रु के साथ उन्होंने अपने एकमात्र पुत्र को प्रव्रज्या के लिए अनुमति दी । पुत्र को अनुमति देते समय माता के समक्ष पुत्र की शैशवावस्था के चित्र बार-बार उपस्थित होकर उन्हें विचलित कर रहे थे । धारिणी-मूल्यांकन मेघकुमार ने दीक्षा लेने के पूर्व माता से ही यह सब जाना कि साधु-जीवन सरल नहीं होता, यह एक कठिन मार्ग है । माता धारिणी के चरित्र से यह बोध होता है कि भगवान् महावीर के समय में भी स्त्री में शक्ति, सहयोग और त्याग विद्यमान रहा । सद्धर्म के प्रसार में नारी का अप्रतिम त्याग रहा, जिसकी तुलना अन्यत्र सरलता से सुलभ नहीं है । अंगारवती' : अंगारवती उज्जैनी ( अवन्तिका ) के महाप्रतापी राजा चंडप्रद्योत की रानी लक्ष्म्यवतार रूप पुत्री वासवदत्ता की माता थी । शारीरिक सौष्ठव तथा सर्व-लक्षणों से परिपूर्ण, विनयादि गुणों की आगार राजकन्या वासवदत्ता को माता अंगारवती व पिता चंडप्रद्योत पुत्र से भी अधिक स्नेह व वात्सल्य से रखते थे । एक समय राज्य दरबार में रानी मृगावती ( कौशाम्बी के राजा शतानीक की रानी ) का अत्यन्त सुन्दर चित्र देखकर स्त्री-लोलुप राजा चंडप्रद्योत आसक्त हो गया और मृगावती को अपनी रानी बनाने की इच्छा से कौशाम्बी नगरी को चारों ओर से घेर लिया। राजा शतानीक को इस अप्रत्याशित आक्रमण से आघात पहुँचा । वे इसे सहन नहीं कर पाये और कुछ दिनों बाद उनकी मृत्यु हो गई । कौशाम्बी के इस युद्ध में राजा चंडप्रद्योत अपने अंतःपुर की सभी रानियों को साथ ले गये थे । बाद में रानियों को यह मालूम हुआ कि राजा कौशाम्बी की रानी मृगावती को अपने अन्तःपुर में रानी बनाकर रखना चाहते हैं । राजा के इस कृत्य से रानियों के आत्म-सम्मान को गहरी ठेस लगी । १. आवश्यकचूर्णि द्वि० पृ० १६१, १९९ आवश्यकवृत्ति ( मलयगिरि ), पृ० १०४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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