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________________ ८४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ w यह सब मालूम हुआ तो उन्होंने रानी को आश्वस्त किया और कहातुम्हारी कामना अवश्य पूरी होगी । उन्होंने अपने पुत्र अभयकुमार ( राज्य के मंत्री ) से सारा वृत्तान्त कहा | अभयकुमार ने तीन दिनों तक निरन्तर उपवास रखकर अपने आराध्यदेव की आराधना की । साधना में दृढ़ अभयकुमार को देखकर उनके पूर्वभव के मित्र ( जो अब देवयोनि में थे ) ने उनकी सहायता करने का निर्णय लिया । अतः अभयकुमार की सहायतार्थं देव ने आकाश में अकाल मेघ की रचना कर माता धारिणी का दोहद पूर्ण किया । ' कालान्तर में गर्भं काल पूर्ण होने पर रानी धारिणी ने सुन्दर पुत्र को जन्म दिया । माता को मेघ का दोहद हुआ था अतः पुत्र का नाम मेघकुमार रखा गया । उनका पालन-पोषण बड़ो सतर्कतापूर्वक किया गया। जब वे युवा हुए तब उनका पाणिग्रहण संस्कार आठ विदुषी राजकुमारियों के साथ किया गया। किसी समय भगवान् महावीर भ्रमण करते हुए नगर में पधारे, मेघकुमार भी उनके प्रवचन सुनने गये । भगवान् महावीर के उपदेशों से प्रभावित होकर वे ऐश्वर्य की ओर से विमुख हुए तथा दीक्षा लेने का संकल्प किया। माता धारिणी से प्रव्रज्या लेने के लिये आज्ञा चाही । माता को अपने पुत्र के इस संकल्प से आकुलता हुई और वात्सल्य स्नेह से प्रेरित होकर पुत्र से बोली 'हे पुत्र ! तुम सुकुमार हो, दीक्षा - पर्याय सरल नहीं है तुम्हें महाकठिन पाँच महाव्रत पालन करने होंगे। तुमको रात्रि भोजन का त्याग करना पड़ेगा, उद्गमशुद्ध, उत्पादनाशुद्ध, ग्रासशुद्ध तथा एषणाशुद्ध आहार ग्रहण कर जीवन निर्वाह करना पड़ेगा । लोभ को छोड़कर अपरिग्रह से रहना होगा, तीन गुप्ति और पंच समिति धारण करना होगा । माता ने साधु- व्र - व्रतों के बारे में विस्तार से बताया । उन्होंने कहा - हे वत्स ! तुम्हें जीवनपर्यन्त स्नान का त्याग करना होगा । भूमिशयन, केशलोच तथा साधु-संघ के साथ उपाश्रय में रहना होगा । क्षुधा के २२ परिषहों को सहना होगा तथा शूद्र, तिर्यञ्च, नर और देवों के उपसर्गों को भी सहन करना होगा । वत्स ! दीक्षा लेना, लोहे के चने चबाने से भी दुष्कर है । यह सरल कार्य नहीं है, यह सब खड्ग की तीक्ष्ण धार पर चलने के समान है । -- असमय हो मेघ आच्छादित हुए - ज्ञाताधर्मकथांगसूत्र | अ - १, पृ० २८-४५ २ - अभयकुमार मंत्री श्वरनुं जीवनचरितुं ( पृ० सं० १४४ ) उपाध्यायचन्द्र तिलक— Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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