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तीर्थंकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएं : ८३ और पाल पोषकर बड़ा किया। उनके पुत्रस्नेह के सामने तेरा पुत्रस्नेह नहीं के बराबर है।
यह वृत्तान्त सुनकर कूणिक को अपने ऊपर बहुत क्षोभ हुआ। वह स्वयं को धिक्कारने लगा, तथा शीघ्र हो पिता को बेड़ियों के बंधन से मक्त करने के लिए लौह दण्ड लेकर श्रेणिक के बन्दीगृह की ओर दौड़ा। राजा श्रेणिक ने कणिक के रूप में अपनी मृत्यु सामने खड़ो देखकर स्वयं ही तालपुट विष जिह्वा पर रखकर अपने प्राण त्याग दिये। इस प्रकार रानी चेलनी ने पत्नी व माता के कर्तव्य को निभाकर एक आदर्श उपस्थित किया । धारिणी: ___ राजगृह के राजा श्रेणिक की सहधर्मिणी रानी धारिणी मेघकुमार की माता थी। रानी धारिणी राजा श्रेणिक की प्रिय रानी थी जो रूप, शील आदि गणों से सर्वत्र प्रिय थी। एक समय रात्रि के चौथे प्रहर में रानी धारिणी ने एक अद्भुत स्वप्न देखा कि चार दन्त वाला उज्ज्वल वर्ण का हाथी उनके मुख में प्रवेश कर रहा है। इससे रानी की नींद टूट गई और वे उठकर इष्ट प्रभु का स्मरण कर, राजा के शयनागार में पहँची, राजा को मृदु शब्दों से जगाती हुई, अपने अनोखे स्वप्न की बात कही। स्वप्न ज्ञान रखने वाले राजा ने हर्षित होकर रानी से कहा 'हे देवानुप्रिय ! यह शुभ स्वप्न है तथा तुम एक शुभ लक्षणों वाले पुत्र को जन्म दोगी।'
तीसरे माह रानी धारिणी को दोहद हुआ-मैं मेघों से आच्छादित आकाश को देख और उसी प्राकृतिक वातावरण में पति के साथ क्रीड़ा करूँ। किन्तु वर्षाऋतु के अभाव में मेघों से आच्छादित आकाश का दर्शन हो कैसे होगा, इस विचार ने रानी धारिणी को चिन्तित कर दिया। वे मन ही मन दुःखी रहने लगीं। राजा श्रेणिक को किसी प्रकार
१. ज्ञाताधर्मकथा सूत्र प्रथम अध्याय पृ० २१-४५
त्रिषष्टिशलाकापुरुष०, पर्व ११, सर्ग १२, पृ० २३४-२३५ २. ज्ञाताधर्मकथा ८-१०, १३, १५-१७, २३
कल्पसूत्रवृत्ति पृ० ३०-३१
अनुत्तरोपपातिक, १-२ ३. त्रिषष्टिशलाकापुरुष०, पर्व १०, सर्ग ६, पृ० ११७
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