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८६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएँ
तीर्थंकर महावीर बीसवें चार्तुमास के समय कौशाम्बी नगरी पधारे, कौशाम्बी को चंडप्रद्योत ने अपने सैन्य दल के साथ घेर रखा था । रानी मृगावती को जब यह सुसंवाद प्राप्त हुआ कि महावीर पधारे हैं तो वह भी दर्शन हेतु तीर्थंकर महावीर के समवसरण में गई । रानी अंगारवती तथा शिवा आदि रानियों ने महावीर के समवसरण में जाने हेतु चण्डप्रद्योत से आज्ञा प्राप्त की । इसो अवसर पर कौशाम्बी की रानी मृगावती ने दीक्षा ग्रहण की। तीर्थंकर महावीर को श्रद्धा-विनयपूर्वक वंदन इत्यादि कर रानी अंगारवती विचार करने लगी कि मैं तथा मेरी भाँति रूप-गुण सम्पन्न अन्य रानियों के अन्तःपुर में होते हुए भी राजा मृगावती को पाने के लिए पागल हो रहे हैं। यह क्षणभंगुर सौन्दर्य का आकर्षण मनुष्य की अधोगति का कारण है । पुरुष केवल हमें भोग की वस्तु समझकर अनादर करता है, फिर इस जीवन की सार्थकता ही क्या है ? अतः मैं भी तीर्थंकर महावीर से प्रव्रज्या ग्रहण कर आत्म-कल्याण के मार्ग का अनुसरण करूँ। एक दढ़-संकल्प के साथ उसने मगावती की भांति अपने स्वामी राजा चंडप्रद्योत से आज्ञा प्राप्त कर तीर्थंकर महावीर से प्रव्रज्या अंगीकार की।' इस प्रकार साध्वी अंगारवती आर्या चन्दना के-साध्वीसंघ में सम्मिलित हुई तथा कई प्रकार के तप, व्रत करते हुए आत्मकल्याण में संलग्न रही।
नन्दा
वेन्नातट नगर के व्यापारी भद्र श्रेष्ठी की गुणवान् पुत्री नन्दा राजगृह के कुमार श्रेणिक की पत्नी थी । माता-पिता ने उसे लाड़-प्यार से पालापोसा और स्त्रियोचित् शिक्षा देकर सर्व कार्यों में निपुण बनाया । स्नेहवश उसे सुनन्दा नाम से भी पुकारा जाता था । शनैः शनैः नन्दा किशोर वय को प्राप्त हुई। माता-पिता उसके लिए योग्य वर की तलाश करने लगे। इसी बीच राजगृह नरेश प्रसेनजित् के पुत्र श्रेणिक भद्र श्रेष्ठी की दुकान पर विचरण करते हुए आये। कुमार श्रेणिक ने श्रेष्ठी को उसके कार्य में सहायता की जिससे भद्र श्रेष्ठी प्रसन्न हुए और उन्हें अपने निवास स्थान पर ले गये । यथोचित् अतिथि सत्कार कर अपने साथ भोजन कराया।
१. त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०, सर्ग ८, पृ० १३४ १. अन्तकृद्दशा १६, अनुत्तरोपपातिक १, निरयावलिका १.१ ज्ञाताधर्मकथा ६.
आवश्यकचूर्णि, द्वि० पृ० १७१ आदि ।
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