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________________ ८० : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं से गये । सुज्येष्ठा राजा श्रेणिक के साथ जाने को तैयार हो गई । सुज्येष्ठा ने अपनी छोटी बहिन चेलना को सम्पूर्ण वृत्तान्त बता दिया। चेलना नैराश्यपूर्ण शब्दों में कहने लगी-"बहिन, हम दोनों इतने वर्ष साथ रहे, अब तुम मुझे छोड़ कर क्यों जा रही हो, मुझे भी साथ ले चलो"। बहिन की वेदना व प्रेम देखकर सुज्येष्ठा ने चेलना को भी साथ ले लिया। जब दोनों बहनें गहन अन्धकार में खड़े रथ पर बैठ रही थीं, तभी सुज्येष्ठा को कक्ष में रखी अपनी रत्नाभूषणों को मंजूषा का स्मरण हुआ और वह चेलना को रथ में अकेली छोड़ कर मंजूषा लेने गई वह वहाँ से शीघ्र नहीं लौट सकी । शत्रु सीमा में अधिक समय रुकना उचित न समझ कर राजा श्रेणिक ने रथ से प्रस्थान किया जिसमें सुज्येष्ठा नहीं थी। जब संकट का समय टल गया तब राजा श्रेणिक ने सुज्येष्ठा को आवाज दी । उसे उत्तर मिला-"मैं सुज्येष्ठा नहीं उसकी बहिन चेलना हूँ"। __ इधर जब सुज्येष्ठा रत्नाभूषणों की मंजूषा लेकर लौटी तो रथ वहाँ न पाकर रुदन करने लगी। घटना जानकर राजा चेटक के सेनापति ने राजा श्रेणिक का पीछा किया। दोनों दलों में मुठभेड़ हुई जिसमें सुलसा के बत्तीस पुत्र जो राजा श्रेणिक के अंगरक्षक थे, मारे गए । सुज्येष्ठा को अपनी बहन चेलना के इस व्यवहार से क्षोभ हुआ। सुरंग मार्ग में हई मुठभेड़ में सुलसा के बत्तीस पुत्रों के मारे जाने को दुःखद घटना के संवाद का सुज्येष्ठा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। उसे वे दृश्य दिखाई देने लगे और संसार असार लगने लगा, इससे सुज्येष्ठा को सांसारिक जीवन से विरक्ति हो गई। उसने अपने पिता राजा चेटक से दीक्षित होने की अनुमति चाही। पिता ने राजसी ठाठ व समारोहपूर्वक अपनी पुत्री सुज्येष्ठा को महावीर के संघ में दीक्षित किया। वैशाली के अध्यक्ष राजा चेटक भगवान् महावीर के सिद्धान्तों का पालन करते थे। उनके स्वजनों में से उन्हीं की पुत्री सुज्येष्ठा ने दीक्षित होकर राज-परिवार में साध्वो परम्परा का प्रारंभ किया। राजा चेटक की अन्य पुत्रियाँ भी भगवान् महावीर के संघ में प्रविष्ट हुई तथा आर्या चन्दना के सानिध्य में रहकर आत्म कल्याण की ओर अग्रसर हुईं। १. (क) आवश्यक चूणि, १६४-१६६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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