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________________ तीर्थंकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ८१ चेलना चेलना राजा श्रेणिक की पत्नी और चेटक की पुत्री थी। राजा श्रेणिक को जैन धर्मावलम्बी बनाने व धर्म के प्रति आस्था तथा विश्वास की उत्तरोत्तर वृद्धि करने का श्रेय इस महान् नारी चेलना को दिया जाता है। राजा श्रेणिक तथा चेलना सुखपूर्वक प्रजा का पालन करते हए आनन्द से जीवन व्यतीत करते थे। कालान्तर में रानी के गर्भ से पूर्वभव में सैनिक का जीव पूत्र (कृणिक) के रूप में पैदा हुआ इसके अलावा हल और विहल नाम के दो पुत्र और भी पैदा हुए । एक बार राजा श्रेणिक ने विचार किया कि मैं रानी चेलना के लिये एक अद्भुत प्रासाद बनवाऊँ जिसमें रहकर वह धर्म ध्यान करे। राजा ने अपने महामंत्री एवंपुत्र अभयकुमार को आज्ञा दी। कथानुसार अभयकुमार ने वन में एक सर्व लक्षणों से युक्त वृक्ष देखा और उसमें रहनेवाले अधिष्ठायक देव की विनती की, फलस्वरूप उस देव ने शीघ्र ही एक स्तम्भवाला महल बनाया और नन्दनवन जैसा उद्यान भी तैयार कर दिया। राजा यह देख आनंदित हुआ और अपनी प्रिय रानी चेलना को उस भवन में रखा । वहाँ रहकर सती चेलना सभी ऋतुओं के फूलों की माला बनाकर उससे सर्वज्ञ प्रभु की पूजा करने में अपना समय व्यतीत करने लगीं' | चेलना की साधुभक्ति महावीर के आगमन का शुभ-संदेश पाकर उनका उपदेश सुनने हेतु रानी चेलना अपने पति श्रेणिक के साथ उद्यान में गई। लौटते समय रास्ते में एक मुनि को उत्तरीय वस्त्ररहित (बिना वस्त्र के) शीत परीषह सहन करने की तपस्या करते हुए देखा। दोनों ने रथ से नीचे आकर उन्हें भी नमन किया। रात्रि के समय रानी चेलना का एक हाथ गलती से ओढ़े हुए वस्त्र से बाहर निकल गया और ठंड में ठिठुर गया। उसे एकाएक मुनि का विचार आया-"भला ऐसी शीत में परिधानरहित उस मुनि का क्या होगा' ? ऐसे शब्द धीरे से मुह से आह के साथ निकल पड़े। राजा श्रेणिक ने यह सुना और उसे अपनी प्रिय रानी के चरित्र पर शंका हुई। ईर्ष्यावश उसने सारी रात जागृत रहकर बिताया। प्रातःकाल अभयकुमार को बुलाकर क्रोध व क्षोभ में यह आज्ञा दी कि २. आवश्यकचूणि प्र०, पृ० ३७१, द्वि०, पृ० १६४-६६, आवश्यकवृत्ति पृ० ६७७-८ दशाश्रुतस्कंध १०,१ १. जैनधर्म का मौलिक इतिहास, पृ० ५३४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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