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________________ तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएं : ७९ अग्नि का प्रकोप शान्त हो जाए। रानो शिवादेवी सम्पूर्ण निष्ठा एवं आत्म विश्वास के साथ इस कार्य के लिये तैयार हुई, उनके द्वारा जल का छिड़काव करते हो भयंकर अग्नि प्रकोप शान्त हो गया। __ कौशाम्बी में भगवान् महावीर का आगमन हुआ। उनके उपदेश से प्रेरित होकर रानी अंगारवती सहित अन्य रानियों ने दीक्षा अङ्गीकार को । रानी शिवादेवी भी दीक्षा अङ्गीकार कर आर्या चन्दना के साध्वी संघ में सम्मिलित होकर व्रत, तप करते हुए आत्मकल्याण में प्रवृत्त हुई। सुज्येष्ठा वैशाली के महागणराज्य के अध्यक्ष राजा चेटक को पुत्री सुज्येष्ठा अपनी छः बहनों के समान सभी कलाओं में प्रवीण थी। अन्य बहनों का विवाह समृद्ध राजाओं के साथ होने के पश्चात् राजकुमारी सुज्येष्ठा अपनी बहन चेलना के साथ अत्यन्त स्नेहपूर्वक रहती थी। राजमहल में रहकर दोनों राजकुमारियों ने कई कलाओं में निपुणता प्राप्त कर ली थी। संगीत व चित्रकला में विशेष निपुण होने के साथ-साथ धर्म के प्रति भी विशेष जागरूक थीं। ___ अन्तःपुर में एक बार दोनों कन्याओं के पास एक तापसी आई और और उन्हें शुचि धर्म का आडम्बरपूर्ण धर्मोपदेश देने लगी परन्तु दोनों राज-कन्याओं ने श्रमणोपासक-धर्म के सिद्धान्तों से उसके तर्कों का खण्डन किया तथा भगवान् महावीर द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने के लिये समझाया। सुज्येष्ठा व उसको बहन द्वारा बताये मार्ग को अपना अपमान समझ कर वहां से तुरन्त चल दी। तापसी इस अपमान का बदला लेने का विचार करने लगी। ___ तापसी ने सुज्येष्ठा का एक सुन्दर चित्र बनाकर राजा श्रेणिक को दिखाया । श्रेणिक इस रूपसी कन्या को देख उसे पाने के लिये व्याकुल हो उठा। मंत्री अभयकुमार के बुद्धि कौशल से राजा श्रेणिक सुज्येष्ठा को प्राप्त करने के लिए सुरंग द्वारा वैशाली के अन्तःपुर में गुप्त रूप से १. त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १० सर्ग ११, पृ० २०८ २. आवश्यकचूणि दि०, पृ० १६४-६, १७४; - आवश्यकवृत्ति पृ० ६७६-७, आवश्यक पृ० २८, स्थानांग वृत्ति पृ० ४५७, उत्तराध्ययन वृत्ति ८१ ३. सुज्येष्ठा आवश्यक चूर्णी वैराग्येण प्रव्रज्या ४-आ० ३. ३. ९२७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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