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________________ ७८ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियों एवं महिलाएँ १. मृगावती चरित्र (संस्कृत) देवप्रभसूरि १३वीं शताब्दी २. मृगावती चौपाई सकलचन्द सं० १९४३ पूर्व विनयसमुद्र सं० १६०२ समय सुन्दर सं० १६६८ ३. ४. "" शिवादेवी' : "1 19 उज्जैनी के महाप्रतापी राजा चंडप्रद्योत की रानी शिवादेवी वैशाली - गणराज्य के अध्यक्ष चेटक की पुत्री थी । एक समय उज्जैनी में महामारी - का प्रकोप हुआ, इस भयंकर महामारी से नगर निवासी त्रस्त हो गये, • कहीं भी उन्हें चैन नहीं मिलता था । राज्य मंत्री ने नगर निवासियों के • असहनीय कष्ट से राजा चंडप्रद्योत को अवगत कराया। इस महामारी - से बचने के उपाय पर मंत्रणा करने के लिये विभिन्न राजवैद्यों को आमंत्रित किया गया कई प्रकार के लेकिन उससे छुटकारा नहीं मिल पाया । उपाय किये गये, / राजा चंडप्रद्योत ने विद्वत्-मंडल से परामर्श किया, इस आतंक से - बचने के लिए सभी उपायों पर विद्वानों ने परस्पर मंत्रणा की । उनमें से एक ने राजा से कहा कि यह दैवीप्रकोपवश हुआ है, अतः आपके अन्त:पुर की शीलवती रानी, यक्ष को पूजा से सन्तुष्ट कर सकें तो इस महामारी का शमन होना सम्भव जान पड़ता है । सतीत्व परीक्षा : राजा चंडप्रद्योत के अन्तःपुर में इस संवाद से सब रानियों में हलचल मच गई। सब रानियों में से रानी शिवादेवी इसके लिये तैयार हुई। उन्होंने यक्ष का पूजन परमर्श अनुसार किया और पूजन के प्रभाव से उज्जैनी में महामारी का प्रकोप शान्त हो गया । कहीं-कहीं यह भी उल्लेख मिलता है कि एक समय उज्जैनी में भयंकर आग लगी, सब उपाय किये गये लेकिन अग्नि शान्त नहीं हो सकी । राजा चंडप्रद्योत ने मंत्रणा की, उन्हें बताया गया कि, जो अग्नि सब उपाय किये जाने पर भी शान्त नहीं हो रही है, वह दैवीय जान पड़ती है । अतः कोई पतिव्रता स्त्री अग्नि पर जल छिड़के तो हो सकता है कि, १. आवश्यकचूर्णि द्वि० १६०, १६८, १७६, आवश्यक पृ० २८, उत्तराध्ययन वृत्ति पृ० १८८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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