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तीर्थंकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषी महिलाएँ : ७७
चन्दना का हाथ एक ओर हटा दिया। चन्दना स्पर्श से जागृत होकर स्पर्श करने का कारण पूछने लगी, तब मृगावती ने सब वृत्तान्त कह सुनाया। इस पर संघ-आचार्या ने पूछा-'तुम्हें इस गहन-अन्धकार में सर्प कैसे दिखाई दिया। इस पर मृगावती ने कहा-'आपकी कृपा से मुझे दिव्य-ज्ञान प्राप्त हुआ है।' ___ साध्वी चन्दना ने भी दिव्य-ज्ञान प्राप्त मृगावती को विनयपूर्वक नमस्कार किया। उनके अन्तःकरण में भी शुभ-भावनाओं का प्रादुर्भाव हुआ व दिव्य-ज्ञान प्राप्त हुआ। धन्य है, मृगावती जिसने सांसारिक जीवन में अपनी विलक्षणता से विजय प्राप्त की। आध्यात्मिक जीवन में भी आचार्या से पहले ही दिव्यज्ञान प्राप्त कर लिया ।'
__ मृगावती-मूल्यांकन मृगावती, राजवैभव में पली नारी थी, उसने बाल्यकाल में ही पिता चेटक के यहाँ राज कौशल व राज दक्षता की शिक्षा प्राप्त की थी। जीवन में हर समय भाँति-भांति के दुःख सहन किये तथा अतिविकट परिस्थितियों में साहस तथा धैर्य रख संकटों का सामना किया। इस नारी के पराक्रम तथा सतीत्व की कथा वैदिक, बौद्ध तथा जैन तीनों साहित्य में समान रूप से प्रसिद्ध है। चेटक की सातों पुत्रियाँ महावीर के अर्हत् धर्म पर पूर्ण विश्वास रखती थीं फलतः कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने धर्म पर अपने विश्वास को अडिग रखा।
कौशाम्बी नरेश शतानीक की रानी तथा उदयन की माता मृगावती का जैन धर्म में महत्त्वपूर्ण स्थान है। जैन धर्म में सोलह सती स्त्रियाँ मानी गई हैं, जिनका नाम प्रातःकाल बड़ी श्रद्धा से लिया जाता है, मृगावती उन्हीं सोलह में से एक है। सोलहवीं शताब्दी के मुसलमान सूफी कवि कुतबन ने भी मृगावती की कथा लिखी। भगवती सूत्र तथा आवश्यक चूर्णि में मृगावती सम्बद्ध कथा का उल्लेख हुआ है। इसके अतिरिक्तता कुछ स्वतंत्र रचनाएँ उपलब्ध होती हैं:
१. (क) भगवतीशतक १-३-५, उदोहर पृ० ५५०-५५१
(ख) आवश्यक चूर्णी-पूर्व भाग, पृ० ९१ २. कल्याण का नारी अंक ७१०
(श्री अगरचन्द्र नाहटा लिखित)
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