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७२ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं देखा वैसा बता दिया। यह सुनकर रानी को रंचमात्र भी मृत्यु का भय नहीं हुआ।
एक दिन रानी प्रभावती ने अपने नित्य नियमानुसार स्नान करके भगवत् पूजा के अवसर पर दासी से शुद्ध वस्त्र पहनने के लिये मंगवाया । वस्त्र पर रानी को अशुभ चिह्न के रूप में रक्त के दाग.दिखाई दिये । भगवान की पूजा के लिये अशुद्ध वस्त्र है, यह जानकर उसने दासी को फटकारा तथा क्रोध के वशीभूत होकर उस पर प्रहार किया जिससे दासी को मृत्यु हो गई। कुछ समय पश्चात् वही वस्त्र उसे सफेद दिखाई दिये। पंचेन्द्रिय जीव की तथा स्त्री जाति को क्रोध के वश हत्या हो जाने पर रानी स्वयं को धिक्कारने लगी। इस घटना की जानकारी रानी ने राजा को दी तथा अपने जीवन की शेष आयु अल्प जानकर संसार त्यागने तथा दीक्षित होने की अनुमति मांगी । राजा को पहले से ही यह सन्देह हो चुका था। उन्होंने रानी प्रभावती को दीक्षित होने की अनुमति दे दी । राजा व्यथित होकर कहने लगे “महादेवी, अपने उच्च भक्ति भाव से यदि तुम देवभव में जाना, तो मुझे अवश्य प्रतिबोध देना।" पति की आज्ञा मिल जाने से रानी प्रभावती ने दीक्षा अंगीकार की। दीक्षित होने के पश्चात् कठोर संयम तप की आराधना की तथा अनशन करके देवगति प्राप्त की।'
जैन धर्म की सतियों में प्रभावती को विशिष्ट स्थान प्राप्त है, उनकी धर्म निष्ठा ने ही राजा को श्रमणोपासक बनाने के लिए प्रेरित किया। पद्मावती :
श्रमणोपासिका पद्मावती (धारिणी) राजा दधिवाहन की पत्नी एवं चेटक राजा की पुत्री थी। उसने चंपानगरी को जैन धर्म का केन्द्र बनाया। इसे शिल्पकार्य, चित्रकला व धर्मशास्त्र का अपरिमित ज्ञान था। रानी धारिणी अपने पति की सेवा एवं धर्म-ध्यान में कर्तव्यरत रहकर सुख-शान्ति से रहती थी। उनकी पुत्री वसुमती अच्छी शिक्षा तथा उच्च संस्कारों से अलंकृत थी।
राजा शतानोक उस समय का अधिक बलिष्ठ एवं पराक्रमी राजा
१. (क) आवश्यकचूर्णि, ३९९
(ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०, सर्ग ११, पृ० २१६ २. आवश्यकचूणि द्वि०, पृ० २०४-५; निशीथचूणि दि०, पृ० २३२; बृहत्कल्प
भाष्य ५०९९; उत्तराध्ययनवृत्ति (शान्तिसूरि) पृ० ३००
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