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तीर्थकर महावीर के युग की जैन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएं : ७१ प्राप्ति से दोनों आनन्दित थे।
एक समय वीतभय नगर के चौक में एक वजनदार काष्ठ की पेटी एक नाविक ने लाकर रख दी। वहाँ के नागरिक व कई अन्य धर्मों के साधुसंत अपने मंत्रादि के प्रभाव से उस पेटी का ढक्कन खोलना चाहते थे पर उन्हें सफलता नहीं मिली। राजा उदयन भी मंत्री के साथ वहीं खड़े-खड़े यह सब देख रहे थे। मध्याह्न हो गया तब भी राजा भोजन के लिये राजमहल में नहीं लौटे। रानी प्रभावती ने चिंतित हो अपनी दासी के द्वारा राजा को बुला भेजा। राजा ने दासी द्वारा संदेश पहुंचा कर रानी को यह आश्चर्य देखने के लिये वहीं बुलवाया। रानी प्रभावती भी यह कौतूहल देखने के लिये रथ में आरूढ़ हो नगर के चौक में आईं। अरहन्त धर्म में अटल विश्वास वाली रानी ने कहा कि "देवी-देवताओं की अपेक्षा अरहन्त देव के नाम-स्मरण से ही यह काष्ठपेटी का ढक्कन खुल जायेगा, ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है ।" राजा की आज्ञा व सहमति प्राप्त कर रानी ने सन्दूक के ऊपरी सतह को धोया, चन्दन, पूष्प अर्पित कर उच्च स्वर से बोली-'हे राग, द्वेष और मोह रहित तथा अष्ट प्रतिहारी आवृत ऐसे देवाधिदेव अरहन्त मुझे दर्शन दो।" इतना बोलने के साथ हो उस मंजुषा का ढक्कन धीरे से खुला और उसमें स्थित देव की प्रतिमा का दर्शन सबको हुआ। इस घटना के परिणामस्वरूप अरहन्त धर्म पर जनता का विश्वास दृढ़ हुआ तथा राजा भी अरहन्त की पूजा व स्तुति करने लगे। उन्होंने भव्य मंदिर बनवाकर उसमें प्रतिमा की स्थापना की तथा रानी प्रभावती प्रतिदिन पूजा करने लगीं।
एक बार रानी प्रभावती ने प्रतिमा की पूजा करके संगीत आरंभ किया तथा भाव विभोर होकर नृत्य करने लगीं। राजा तन्मयता से वीणा बजाने लगे। तल्लीनता के उन क्षणों में राजा को एक क्षण के लिये रानी का सिर नहीं दिखाई दिया, केवल नीचे का धड़ ही दिखाई दिया। इसे अशुभ मानकर राजा को क्षोभ हुआ और हाथ से वीणा जमीन पर गिर पड़ी। रानी जो कि नृत्य में मग्न थी, एकदम विघ्न उपस्थित होने से रुक गई और राजा से एकाएक वीणा वादन बन्द करने का कारण पूछने लगी। रानी के कारण जानने के अति आग्रह से राजा ने जो दृश्य
१. (क) त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०, सर्ग ६, पृ० १११
(ख) आचार्य हस्तीमलजी-जैन धर्म का मौलिक इतिहास, पृ० ५१६ २. त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व १०, सर्ग ११, पृ० २१५
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