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तीर्थकर महावीर के युग की जन साध्वियाँ एवं विदुषी महिलाएँ : ६३ रामायण में जिस प्रकार लक्ष्मण को जीवन सहचरी उर्मिला के जीवन, मनोदशा तथा क्रियाकलापों की उपेक्षा की गई है, उसी प्रकार जैन साहित्य में वर्द्धमान महावीर की जीवन सहचरी यशोदा की जीवनझाँकी तथा उनके मानसिक मनोभावों की सर्वथा उपेक्षा की गई है। इसी प्रकार बौद्ध साहित्य में गौतम बुद्ध की पत्नी यशोधरा के जीवन की घटनाओं के दिग्दर्शन की भी उपेक्षा की गई है, ऐसा प्रतीत होता है । प्रियदर्शना:
प्रियदर्शना माता यशोदा तथा उस समय के महान तपस्वी, विचारक वर्द्धमान महावीर की इकलौती पुत्री थी। राजवंश की परम्परा के अनुसार उसे कई कलाओं की शिक्षा दी गई थी। यौवनारूढ़ होने पर महावीर की बहिन सुदर्शना के पुत्र राजकुमार जमाली से इसका विवाह हुआ था। यह परिवार अपने युग का अत्यधिक सम्पन्न, वैभवशाली एवं प्रतिष्ठित था।
कई स्थानों पर उपदेश देते हुए तीर्थंकर महावीर क्षत्रियकुण्ड पधारे । सर्वज्ञ महावीर का आगमन जान नगर-निवासी भक्ति और श्रद्धा से वन्दन व उपदेश सुनने को उस ओर चल पड़े। जमाली भी अपनी पत्नी प्रियदर्शना सहित प्रभु की वन्दना करने आये । समवसरण में धर्मोपदेश श्रवण कर उन्हें अर्हन्त-धर्म पर श्रद्धा उत्पन्न हुई। अर्हन्त के उपदेश से प्रबोध पाकर तथा गुरुजनों की अनुमति से जमाली और प्रियदर्शना ने दीक्षा ग्रहण करने का निश्चय किया। जमाली ने पांच सौ पुरुषों के साथ तथा प्रियदर्शना ने एक हजार महिलाओं के साथ तीर्थंकर महावीर से प्रव्रज्या ग्रहण की । प्रियदर्शना ने सामायिक आदि ग्यारह अंगों का अध्ययन किया तथा वह आर्या चन्दना के साध्वी संघ में सम्मिलित होकर उग्र तप करने लगी।
एक समय श्रावस्ती के कोष्टक उद्यान में श्रमण जमालो अपने पाँच
१. आवश्यकभाष्य ८०, कल्पसूत्र १०९, आचारांग २, १७७, आवश्यकचूर्णि
प्र० पृ० २४५, ४१६, उत्तराध्ययन वृत्ति पृ० १०१, विशेषावश्यक भाष्य,
२८२५, २८३२ २. (क) भगवतोसूत्र, २-६-३-३३ ।
(ख) त्रिषष्टिशलाकापुरुषचरित्र पर्व १०, सर्ग ८, पृ० १४४ ३. भगवती शतक ९।३।६ ।
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