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________________ ५६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियां एवं महिलाएं माता देवानन्दा का नाम पुनः महावीर के केवल-ज्ञान के पश्चात् चौदहवें वर्षावास के समय आता है। महावीर ब्राह्मणकुण्ड के पास बहुसाल उद्यान में ठहरे थे। महावीर का आगमन सुनकर ऋषभदत्त बहुत प्रसन्न हुए और पत्नी देवानन्दा के साथ रथारूढ़ हो बहुसाल उद्यान में पहँचे। विधिपर्वक वन्दन, नमस्कार कर सभा में बैठे व भगवान् के उपदेश सुनने लगे। देवानन्दा तीर्थंकर महावीर को निनिमेष दृष्टि से देखने लगी। महावीर की ओर ज्यों-ज्यों वह निहारतो, अत्यन्त रोमांचित होती जाती थी। उनका वक्ष उभरता जा रहा था, साथ ही आँखों से हर्ष के अश्रु बह रहे थे। उन्हें स्वयं भी यह अनुमान नहीं हो पा रहा था कि यह सब क्या हो रहा है ? अकस्मात् उनकी कंचकी टूटी और उनके स्तनों से दूध को धारा बह निकली । उनका पुत्र-वात्सल्य उमड़ आया।' ____ यह दृश्य देखकर महावीर द्वारा दीक्षित गौतम गणधर ने महावीर से देवानन्दा के इन शारीरिक भावों के बारे में उत्सुकता से प्रश्न किया, "भगवान् ! आपके दर्शन से देवानन्दा का शरीर पुलकित क्यों हो गया है ? नेत्रों में हर्ष के अश्रु क्यों आ गये और उनके स्तनों से दूध की धारा क्यों बहने लगी ?" भगवान् महावीर ने उत्तर दिया, “गौतम ! देवानन्दा मेरी माता हैं और मैं उनका पुत्र हैं। देवानन्दा के शरीर में जो भाव प्रकट हुए उनका कारण पुत्रस्नेह ही है।" __ ऋषभदत्त व देवानन्दा ब्राह्मण होते हुए भी जीव, अजीव, पुण्य-पाप आदि तत्त्वों के ज्ञाता व श्रमणोपासक थे। पार्श्वनाथ परम्परा को मानने वाले थे। अतः भगवान महावीर ने महती सभा में अपनी माता देवानन्दा एवं पिता ऋषभदत्त को उपदेश दिया तथा उनके दीक्षित होने की भावना जानकर उन्हें दीक्षा दी। देवानन्दा ने साध्वी चन्दनबाला के नेतृत्व में रहकर संयम का पालन किया तथा ११ अंगों का अध्ययन किया एवं कई प्रकार के तप, व्रतों से वर्षों तक संयम की साधना कर मुक्ति प्राप्त की।२ त्रिशला इस महान् नारी को युग के एक तेजस्वी एवं महान् तपस्वी पुत्र वर्ध१. कल्पसूत्र२. भगवती सूत्र, श० ९-उ० ६.१० सूत्र ३८२ ३. आवश्यकचूर्णि, प्र०, प० २४५, कल्पसूत्र २१, विशेषावश्यकभाष्य १८४९, तीर्थोद्गालिक ४८७ आदि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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