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तीर्थंकर महावीर के युग की जैन साध्वियां एवं विदुषो महिलाएँ : ५५ गंडकी नदी के तटवर्ती उपनगर ब्राह्मण कुण्डपुर के मुखिया थे। ऋषभदत्त व देवानन्दा जैन धर्म के तेईसवें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के शासनानुयायी थे, पति-पत्नी दोनों श्रमणोपासक थे । देवानन्दा सुकुमार व सुन्दरवदना थी । रूप के अनुरूप ही उनका सुकुमार स्वभाव था। भावी तीर्थंकर महावीर के जीव के देवानन्दा के गर्भ में प्रविष्ट होते ही उसने परम्परानुसार क्रम से चौदह महास्वप्न देखे । ।
स्वप्न देखकर तुरन्त ही वे शय्या से उठकर अपने पति ऋषभदत्त के शयनागार में पहुंची और मधुर शब्दों में इन अद्भत चामत्कारिक स्वप्नों को बताया और उत्सुकता से पूछा-"स्वामी, ये शुभ अशुभ, हैं अथवा, कृपया इसका फल तो समझाइए।" ऋषभदत्त ने स्वप्नों का वर्णन करते हुए बताया "प्रिये स्वामिनो, तुम्हें सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की प्राप्ति होगी।"
देवानन्दा यह जानकर सन्तुष्ट हुई तथा प्रसन्नतापूर्वक गर्भ की रक्षा करने लगी। गर्भ के अनुकूल प्रभाव से देवानन्दा के शरीर की शोभा, कांति और लावण्य भी बढ़ने लगा। इसप्रकार गर्भ काल के ८२ दिन बीत गए। गर्भहरण :
८२ दिन के पश्चात् मध्य रात्रि को माता देवानन्दा ने स्वप्न देखा कि जो १४ स्वप्न उन्होंने कुछ दिन पूर्व देखे थे उन स्वप्नों को किसी ने चुरा लिया है ।२ जैन अनुश्रुत के अनुसार इन्द्र ने देवानन्दा के गर्भ से महावीर के जीव को हरिणेगमेषि देव द्वारा अपहृत कराकर कुण्डपुर के नायक क्षत्रिय राजा सिद्धार्थ की पत्नी त्रिशला के गर्भ में स्थापित किया। उसी समय रानी त्रिशला ने चौदह मंगल स्वप्न देखे। इन स्वप्नों का विस्तृत वर्णन कई ग्रन्थों में मिलता है । देवानन्दा अपने स्वप्नों को चुराते हुए देख अत्यन्त व्यथित हुई तथा तत्काल शय्या से उठकर यह आकस्मिक घटना अपने पति को बताई। १. कल्पसूत्र प० १४ चौदह स्वप्न के नाम :-१. हाथी, २. वृषभ, ३. सिंह,
४. लक्ष्मी, ५. पुष्प माला, ६. सूर्य, ७. चन्द्र, ८. स्वर्ण कलश, ९. समुद्र, १०. सिंहासन, ११. सरोवर, १२. देवविमान, १३. रत्नों की राशि और
१४. अग्नि २. दिगम्बर परम्परा में देवानन्दा को महावीर की माता मानने से निषेध
किया गया है, गर्भ परिवर्तन व पुनर्स्थापन को दिगम्बर सम्प्रदाय मान्यता नहीं देता।
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