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________________ ४६ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएं देखकर महाकाल ने अपनी गुणवती पुत्री मदनसेना का विवाह श्रीपाल से किया था। दोनों श्री नवकार मन्त्र के प्रभाव से सुख से जीवन व्यतीत करने लगे। मदनमंजूषा ___कनककेतु राजा की पुत्री मदनमंजूषा प्रतिदिन अपने दादा द्वारा निर्मित श्री ऋषभदेव जिनालय में सुबह, दोपहर एवं सन्ध्या को पूजन के लिये जाती थी तथा भक्ति भाव से पूजन करती थी। एक दिन राजकन्या ने कलात्मक ढंग से प्रभु की आंगी रचाई। यह देख राजा कनककेतु को अपनी चौसठ कलाओं में निपूण पूत्री के योग्य वर की चिन्ता हुई। इस प्रकार की चिन्ता के कारण दैवी शक्ति से मन्दिर के द्वार बन्द हो गये। श्रीपाल कुमार के मन्दिर में दर्शनार्थ आने पर द्वार खुले और अंत में मदनमंजूषा से उसका विवाह हुआ। मदनरेखा वसुपाल राजा की पुत्री मदनमंजरी सब कलाओं में निपुण थी। ज्योतिषी की भविष्यवाणी के अनुसार समुद्र के किनारे चंपा के झाड़ के नीचे जो पुरुषरत्न सोता हुआ दिखाई देगा वही तुम्हारा पति होगा। अतः श्रीपाल समुद्र से तैर कर उस राज्य के किनारे आकर सो गया और मदनमंजरी से विवाह हुआ। यहाँ धवल शेठ, डूबनायक को श्रीपाल का सम्बन्धी बताकर श्रीपाल को नीच कुल का बताने की कोशिश करता है, अन्त में भेद खुल जाता है और मदनरेखा के साथ श्रीपाल सुख से रहते हैं। गुणसुन्दरी यह राजकन्या वीणा बजाने में निपुण थो। श्रीपाल कुबड़े का रूप बनाकर उसके पास गये और इतनो सुन्दर वीणा बजाई कि राजकुमारी १. आ० विनयविजयजी, चित्रमय श्रीपाल रास, संपा० तथा संशो० साराभाई मणिलाल, पृ० ७७ २. वही पृ० ८६ ३. वही, पृ० ११२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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