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________________ प्रागैतिहासिक काल की जैन साध्वियों एवं विदुषी महिलाएँ : ४५. स्वभाव के कारण नारी समाज में उसका उच्च स्थान था। दोनों की कीर्ति चारों ओर फैल गई। इससे छोटे भाई कुबेर को क्षोभ होने लगा।' उसने नल के इतव्यसन का लाभ उठाकर कपट से उसका राजपाट इत्यादि छोन लिया। इससे नल व दमयंती राज्य त्यागकर अरण्य की ओर चल पड़े। वन में होने वाले पत्नी के दुःखों को देखकर नल दमयंती को निद्रा अवस्था में छोड़ कर चला गया। वन में अकेली राजरानी कई कठिनाइयों को पार करके अपने पिता के घर पहुंची। वहाँ अपनी बुद्धिविवेक से पिता को विशेष स्वयंवर का आयोजन करने की सलाह दी। नल सारथी के वेश में दमयन्ती के स्वयंवर में आया किन्तु दमयन्ती और राजा ने उसे पहिचान लिया और अन्त में दोनों का मिलाप हआ। इस प्रकार के वियोग का कारण पूछने पर अवधिज्ञानी मुनि ने बताया कि "हे दमयन्ती, पूर्वभव में तुमने एक मुनि पर क्रोध किया तथा उन्हें बारह घंटे रोक कर रखने के दोष से तुम्हें इस भव में यह दुःख उठाना पड़ा।" मयणासुन्दरी तीर्थंकर मुनि सुव्रत के समय में श्रीपाल राजा (उंबरराणा) एवं मयणासुन्दरी की कथा उल्लेखनीय है। किसी बात पर क्रोधित होकर पिता ने पुत्री का विवाह कुष्ठ रोग से पीड़ित श्रीपाल नामक कुष्ठ रोगियों के नायक उंबरराणा से कर दिया। मयणासुन्दरी को आचार्य ने इस रोग से मुक्ति पाने के लिये 'सिद्धचक्र' का विधि सहित व्रत पालन तथा उसका माहात्म्य समझाया । नौ दिन तक विधि सहित क्रिया कर पति-पत्नी दोनों ने आयंबिल का व्रत किया। अतः इस श्रद्धा-भक्ति एवं सिद्धचक्र के प्रभाव से श्रीपाल रोग मुक्त हो पूर्व के समान एक सुन्दर राजकुमार हो गया। श्रीपाल का कथानक जैन समाज में इतना लोकप्रिय हुआ है कि उस पर प्राकृत, अपभ्रंश और संस्कृत में लगभग ३०-४० ग्रन्थ लिखे गये। मदनसेना भरूच बन्दर के महाराजा महाकाल की पुत्री मदनसेना श्रीपाल कुँवर की दूसरी पत्नी थी। श्रीपाल के शारीरिक बल एवं अन्य गुणों को । १. हेमचन्द्राचार्य, त्रिषष्टिशलाकापुरुष, पर्व ८, सर्ग ३, पृ० २६५ मुनि हस्तीमलजी-आगम के अनमोल रत्न, पृ० ६३० । २. डा० हीरालाल जैन, भारतीय संस्कृति में जैन धर्म का योगदान, पृ० १७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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