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________________ ४४ : जैनधर्म की प्रमुख साध्वियाँ एवं महिलाएँ 'भव के कर्म बन्धन की कहानी सुनाई। मुनि ने कहा कि, "पूर्वभव में कनकोदरी रानी के भव में तुमने जिनेन्द्रदेव की प्रतिमा को किसी कमरे के मध्य में रख दिया था। उस समय वहाँ जयश्री साध्वो ने (कहीं-कहीं संयम श्री नाम भी मिलता है) बताया कि जिन प्रतिमा के अविनय के कारण तुमने घोर बन्धन बाँधा है और वही अशभ कर्म बन्ध के कारण तुम्हें यह दुःख सहन करने पड़े हैं। अतः अब इन अशुभ कर्मों का अंत हो रहा है।" महामुनि की यह वाणी सुनकर दोनों आश्वस्त हुई और मणिचुल पर्वत की गुफा में अरिहंत प्रभु की सेवा करती हुई अपना गर्भकाल व्यतीत करने लगी ।। गर्भकाल पूर्ण होने पर अंजना ने एक तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया ।२ कुछ समय पश्चात् अंजना का मामा प्रतिसूर्य विद्याधर उसे एवं उसके पुत्र को अपने यहाँ ले गया। कालांतर में पवनंजय जब युद्ध से लौटा तो अंजना को महल में न पाकर उसे तलाश करते हुए अपने श्वसुर गृह गया। वहाँ भी अंजना को न पाकर पवनंजय शोक विह्वल होकर निर्जन वन में गया और प्रण किया कि, "जब तक अंजना का पता नहीं लगेगा मैं अन्न-जल ग्रहण नहीं करूँगा।" पवनंजय के माता-पिता तथा प्रतिसूर्य भी पवनंजय को खोजने निकले। काफी तलाश के बाद सभी लोगों ने पवनंजय को एक अटवी में मौन तथा मृत्यु का आलिंगन करने की तैयारी में देखा। यहाँ प्रतिसूर्य ने अंजना तथा पुत्र हनुमान (हनुरूह द्वीप में पालन-पोषण) के कुशल क्षेम का वृत्तान्त कह सुनाया और पवनंजय प्रतिसूर्य के साथ नगर में गये जहाँ चिर विरहिणी अंजना से मिलकर प्रसन्न हुए। इसी अंजना के पुत्र महाशूरवीर हनुमान रामायण के प्रसिद्ध राम सेवक हुए हैं। दमयन्ती विदर्भ के राजा भीम की गुणवतो व शीलवती रानी पुष्पदंती ने एक रात्रि में दन्ती हाथी का स्वप्न देखा। कालान्तर में रानो ने एक पुत्री को जन्म दिया, जिसका नाम दमयंती रखा गया। उसका विवाह कोर्ति व पराक्रम में श्रेष्ठ राजा नल से हुआ । रानी दमयंती राजा नल के राजकार्य में उचित सलाह देती थी। दोनों प्रजा को पूत्रवत् प्यार करते थे। अपने ऊँचे विचार व विनम्र १. रविषेणाचार्य, पद्मपुराण, भाग १, पर्व १७, पृ० ३८२ २. वही, भाग १, पर्व १७, पृ० ३९५ ३. आवश्यक, पृ० २८ . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002126
Book TitleJain Dharma ki Pramukh Sadhviya evam Mahilaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHirabai Boradiya
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1991
Total Pages388
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Biography, History, & Religion
File Size16 MB
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